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इक बोझ दिल पर लिए जी रही हूं-घुंट आंसुओं का रोज पी रही हूं

Jyoti yadav 18 Aug 2023 गीत समाजिक घुंट आंसुओं का रोज पी रही हूं 7958 0 Hindi :: हिंदी

इक बोझ दिल पर लिए जी रही हूं
घुंट आंसुओं का रोज पी रही हूं
 मेरे अपने ही कहते हैं
 सब कुछ ले लिया मैंने उनके हिस्से का
तु ही बता दें मां अम्बे क्या जबाव है 
पास तेरे मेरे इस। किस्से का

क्या तुने कुछ नहीं लिखा था पाना मेरे तकदीर में
क्या सुनापन था मेरे हाथों के लकिर में

कर्ज इनका कैसे चुकाऊंगी
लगता है मां अब हार जाऊंगी
ऊब चुकी मां अब सुनते सुनते
पास बुला ले ना मां बड़ा दिन हुआं यहां रहते रहते

अनजाना यह देश था
जहां भेज दिया तुने हमको
जीना यहां कठिन हुआ मां
मुझ नन्ही सी परिंदे का
मुश्किल सफर दुःख भरा दिन हुआं मां

सुन सुन अल्फाज़ मुख अपना सील रही हूं
इक बोझ दिल पर लिए जी रही हूं
घुंट आंसुओं का रोज पी रही हूं


ज्योति यादव के कलम से ✍️

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