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त्याग के सारी भाषाएँ

Trishika Srivastava 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक त्याग के सारी भाषाएँ 23049 0 Hindi :: हिंदी

त्याग के सारी भाषाएँ,
बस ब्रज की बोली बोलूँगी।
श्याम तुम्हारी नगरी में,
मैं जोगन बन कर घूमूँगी।

निस-दिन तेरी मुरली की,
मुझे तान सुनाई देती है।
जहाँ कहीं भी देखूँ मैं,
तेरी छवि दिखाई देती है।

युगों से प्यासी आँखों की,
प्यास बुझाने आ जाओ।
साँझ ढले जमुना तीरे,
दरस दिखाने आ जाओ।

मधुबन का हर फूल मेरे,
पाँव में शूल चुभाता है।
आन मिलो मुझ से ‘कान्हा’,
अब विरह सहा न जाता है।

— त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’

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