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तुम यहां क्यों आए हो-किस लिए धरा पर आएं हो

Sunny Kumar 11 Jan 2024 कविताएँ अन्य Motivational poem, yaha kyo aaye ho, यहां क्यों आए हो 11510 0 Hindi :: हिंदी

किस लिए धरा पर आएं हो,
किस के लिए धरा पर आएं हो
तुम्हारा लक्ष्य ना ओझिल हो जाए
व्यक्तित्व ना बोझिल हो जाए

माया मोह निंद्रा त्यागो
हसी ठिठोली लड़कपन से जागो
बहुत खेले अब और नही
तुम कौन हो, स्वयं मे झांकों 

समय रहा अब शेष नहीं
समय कभी  विवेश नहीं
जो समय के साथ न चलता है
रहता   उसका अवशेष नही

ना समय कभी भी रुकता है
ना किसी के लिए झुकता है
यह बढ़ता रहता है पल पल
यह चलता रहता है पल पल

यह देखें  कितने आदिकाल,
अनादिकाल, अतिआदिकाल
कितने द्वापर, त्रेता, सतयुग,
कलयुग कितने,कितने युग–युग 


इतिहास स्वयं दुहराता है
बारंबार इंगित कर जाता है
है कौन भला बाधा जग में
जो रहे अटल मानव मग में

जब कोई दशरथ, जोर लगाता है
पहाड़ का भी छाती फट जाता है
जब देश प्रेम की बात चले
मिसाइलमैन कहलाता है
✍️Sunny Kumar

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