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कोख में अपनी माँ मेरी हमको देती मार-नारी नर्क से निकाल के हमको कर देती उद्धार

Vipin Bansal 30 Jul 2023 कविताएँ समाजिक 4735 0 Hindi :: हिंदी

कविता = ( कोख ) 

कोख में अपनी माँ मेरी हमको देती मार !
नारी नर्क से निकाल के हमको कर देती उद्धार !!
श्राप ग्रस्त इस योनि से हमको देती तार !
हम पर भी ओ माँ मेरी कर देती उपकार !!
कोख में अपनी माँ मेरी हमको देती मार !
नारी नर्क से निकाल के हमको कर देती उद्धार !!

नारी को न नारी माने, भोग-विलास की वस्तु जाने !
बिस्तर तक ही सीमित रहती इनकी हर एक रात !!
व्यंजनों की तरह परोसे हमको दिन और रात ! 
युगों-युगों से होता आया यूँही अत्याचार !!
कोख में अपनी माँ मेरी हमको देती मार !
नारी नर्क से निकाल के हमको कर देती उद्धार !!

नारी झांसी नारी इंदिरा नारी दूर्गा नारी शक्ति !
फिर भी अब तक अबला नारी विलुप्त हुई नारी शक्ति !!
कैसे होगा इस धरा पर दुष्टों का संहार !
कब होगा न जाने अब फिर कोई अवतार !!
कोख में अपनी माँ मेरी हमको देती मार !
नारी नर्क से निकाल के हमको कर देती उद्धार !!

अबलाओं की लाज उतारी मौन हुई फ़रियाद !
कृष्ण ने न चीर बढ़ाया चीखें हुई बेकार !!
कौरवों की जीत हुई, गई द्रौपदी हार !
आग लगी न उठा धुआँ ये कैसी सरकार !!
कोख में अपनी माँ मेरी हमको देती मार !
नारी नर्क से निकाल के हमको कर देती उद्धार !!

जिस्म भी छलनी रूह भी छलनी लूट गए अरमान !
जी कर भी अब क्या करें बचा नहीं सम्मान !!
अखबारों की रद्दी में हुआ दफ़न इंसाफ़ !
बेशक हमको इंसाफ़ दिला दो, हम हुईं अख़बार !!
कोख में अपनी माँ मेरी हमको देती मार !
नारी नर्क से निकाल के हमको कर देती उद्धार !!

कच्ची कलियाँ रौंद रहे देख यहाँ हैवान !
शहर-शहर खुल गए कोठे भूख न होती शांत !!
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, हमको न इनका भोज बनाओ !
भूख की इनकी हम पर कब तक यूँही पड़ेगी मार !!
कोख में अपनी माँ मेरी हमको देती मार !
नारी नर्क से निकाल के हमको कर देती उद्दार !!

                  विपिन बंसल

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