संदीप कुमार सिंह 26 Aug 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 8670 0 Hindi :: हिंदी
उलफत ही उलफत जहां,वहीं रहे अरु आब। हर बाधा को पार कर,बने रहें महताब।। खुशबू हो महताब का,संग रहो तुम काश। किस्मत बदले यार तब,पार करूं हर पाश।। सुरभित फूल गुलाब का,लाता सदा बहार। रौनक ही रौनक रहे,प्राण रहे गुलजार।। मौसम सब गुलजार है,कायम रखिए चाह। नित नव मंथन से रहे,सुलभ सरल हर राह।। खुद से खुद पर कर विजय, आगे बढ़िए आप। करके भला समाज का,करिए प्रभु का जाप।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....