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ममता के दांव से कांग्रेस में छटपटाहट

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख राजनितिक Politics 85994 0 Hindi :: हिंदी

ममता के दांव से कांग्रेस में छटपटाहट
पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद पवार से मुलाकात कर जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए, तब विपक्षी दलों खासकर संप्रग की संयोजक पार्टी कांग्रेस में खलबली मच गई। 
रही-सही कसर ममता के करीबी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अप्रत्यक्ष रूप से यह कहकर कांग्रेस नेतृत्व को झकझोर दिया है कि कांग्रेस को पूर्णकालिक और नए अध्यक्ष की जरूरत है। कांग्रेस ने विगत 8-10 साल में जो भी चुनाव लड़े हैं, उसमें उसे 10 प्रतिशत भी सफलता नहीं मिली है। यही नहीं, माकपा का मुखपत्र भी यही संदेश दे रहा है कि नेतृत्वकर्ता न कांग्रेस हो, न ममता; बल्कि नेतृत्व करनेवाले का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से होना चाहिए।
इसपर लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीररंजन चैधरी ने ममता पर ही हमला बोलते हुए पूछा है, ‘‘उनको पता नहीं है, संप्रग क्या है? वह बंगाल की जीत के बाद सोच रही है कि पूरे भारत ने ‘ममता-ममता’ का जाप करना शुरू कर दिया है। लेकिन, भारत का मतलब बंगाल नहीं है और अकेले बंगाल भारत नहीं है।’’
इसके विपरीत गु्रप-23 के सदस्यों-कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा ने संतुलित बनान देते हुए कहा है कि यह समय एकजुटता का है। कांग्रेस के बिना संप्रग वैसा ही है, जैसे आत्मा के बिना शरीर। लेकिन, इससे यही जाहिर होता है कि तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस में तलवारें खिंच आई हैं, जिसकी परिणति के रूप में विपक्षी एकता धराशाही हो सकती है।
ममता बनर्जी की यह चुनौती उस कांग्रेस के लिए एक नई मुसीबत बनकर उभर रही है, जो राष्ट्रीय पार्टी कहलाती है और जिसने बरसों तक देश में शासन किया है। इस चुनौती का आशय यह भी कि उसका नेतृत्व पूर्णतया अप्रासंगिक, अनुपयोगी और निष्प्रभावी हो गया है। 
लेकिन, अफसोस यह कि कांग्रेस नया नेतृत्व तलाशने या पुराने नेतृत्व पर जान फूंकने के लिए कोई ऐसा खास कवायद नहीं कर रही है, सिवाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोसने और सरकार की बात-बात आलोचना करने के। उनका मकसद ही सरकार की अच्छी-भली नीति की बुराई करना भर रह गया है। 
जबकि देश का जनमानस नरेंद्र मोदी की सरकार को बड़ी उम्मीदों से देख रही है और विश्वास जता रहा है कि देश की तमाम समस्याओं का कोई अंत कर सकता है, तो मौजूदा सरकार ही। इसलिए उनके खिलाफ कांग्रेस की बेतुकी आलोचनात्मक प्रवृति से राजग को नहीं, अपितु कांग्रेस को ही नुकसान हो रहा है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि ममता बनर्जी फायर ब्रांड नेत्री रही हैं और हैं। ‘बंगाल के पुनर्विजय’ के बाद उसके हौसले बुलंद हैं, लेकिन कांग्रेस के बिना तीसरा विकल्प देश को देना वैसा ही है, जैसे बिना मल्लाह की नाव पर सवार होना। 
देश पहले भी ऐसे बेमेल गठबंधनों की सरकारों को करीब से देख चुका है, जो अपने ही नेताओं की महत्वाकाक्षांओं के शिकार होकर असमय ही धराशाही हो गए हैं। फिर चाहे, जनता पार्टी की सरकार हो, जनता दल की सरकार हो, राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार हो, सबका एक-सरीखे हश्र हुआ है।
ममता के इस बयान को शिवसेना के प्रवक्ता ने यह कहकर हवा निकाल दी है कि कांगे्रस के बिना विपक्षी एका का कोई औचित्य नहीं है। वहीं, राकापा ने शिवसेना के बयान का समर्थन कर ममता के शिगूफे को सिरे से खारिज कर दिया है।
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan से सर्च कर और पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।

		

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