Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग बातो ही बातो में 14551 0 Hindi :: हिंदी
बाते हि बातों में ऑफिस के कुछ कागज़ो को खंघाल रहा था कुछ को छाट तो कुछ को फाड़ रहा था बो एका एक आ गये मेरे आखों के सामने बातो ही बातो में चहरे पे बही मुस्कान होठो पे बही प्यास आँखों में बही ऐहसास अंदाज़ आज भी बही था बातो ही बातो में मैं उनको देख हका बका सा रह गया होठ खामोस पर आखों से कह गया तुम काहा थे इतने दिन क्यों चले गये थे क्यों आपको थोडा भी ख्याल नहीं था क्या आपको मुझे तनिक भी प्यार नहीं था बो आखों से आखों को इसरा कर दिए प्यार तो था पर ऐतवार नहीं था बातो ही बातो में