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रंगभूमि -जमी हुई थी रंगभूमि

Santosh kumar koli 09 Jun 2023 कविताएँ धार्मिक रंगभूमि (महाभारत) भाग -1 7305 0 Hindi :: हिंदी

जमी हुई थी रंगभूमि, शोभित दिग्गज दीप्ति से दमक रहे।
मानों एक साथ नभ में, कई सूरज चमक रहे।
स्फार रश्मियाॅं स्फुटन से, अंबर आभा -सी फूट रही।
सह न सकी भार एक साथ, धरा दर्द से छाती कूट रही।
उठ बोले द्रोण अर्जुन -सा धनुर्धर,
 दूजा न जग में जन्मा है।
सारे वीर, विद्या, निषंग सर समाए, इतना बड़ा भाथा का पनहा है।
है आचार्य है, सिंह गर्जन, तड़ित् तांडव कर्ण सभा में आया।
सूर्य ने सारा तेज़ इसी में दिया उतार, ये हुंकार, सभा में सन्नाटा छाया।
अर्जुन, अर्जुन करते हो, क्योंकि अर्जुन को तुमने सिखाया है।
है धरा पर और भी माॅं, जिसने निज सुत को पय पिलाया है।
मैं बड़ा या अर्जुन, बाण करेंगे गर्जन, सद्यः फ़ैसला सभा पर डालता हूं।
द्वंद्व युद्ध के लिए मैं, अर्जुन को ललकारता हूं।
सूर्यवंश मां कुंती, पिता पांडू, द्रोण है गुरुवर। 
बोले कृप, किस कुल जाति के, अपना परिचय दो धनुर्धर।
जाति, जाति रखकर, क्यों जाति के पीछे छिपते हैं?
जाति, कुल ढाल कायर की, पी जाति जाम, बचकर, बकते, बहकते हैं।
मेरा धनुष तरकश के तीर, सिंह -सा वक्षः स्थल।
मेरा परिचय मेरा पुरुषार्थ, भुजदंड व भुजबल।
कुल, वंश, जाति, न रण में काम आते हैं।
परचम चमकता है उनका, जो समरांगण में रिपु के उर पर, धर पैर चढ़ जाते हैं।
मेरा, अर्जुन का गुरेरा, सर से सर करेंगे बात।
न जाति न कुल, फ़ैसला धनुष का धनुष के हाथ।
रणांगण का परिचय छोड़ो, यह रंगभूमि हस्तिनापुर की।
राजा, राजकुमार ललकार सकता, बंद करो उमड़ उर की।

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