Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

चुनावी रंग {कविता}

अभिषेक मिश्रा 30 Mar 2023 कविताएँ राजनितिक ✍✍ अभिषेक मिश्रा 17889 0 Hindi :: हिंदी

   अब ! आ गया है चुनावी रंग ,
                   सब पर छा गया है चुनावी रंग l  नेताजी भी हो गए बेढ़ंग ,
                  मचा रहें  हैं चारों तरफ हुड़दंग l
ऐसा सब पर छाया रंग ,
                  सीधे-सच्चे लोकतंत्र को ?
तरह-तरह के वादों व जुमलो में भटकाया रंग । 
                  जनता बेचारी गई मारी,
बढ़ती जा रही दिनों-दिन बेरोजगारी ।
                 युवा है परेशान किसानों में भी घमासान,
 देश- प्रदेश हित के लिए नेताजी हैं इतने हैरान ?
                         पार्टी से टिकट न मिलने पर,
 लगता है देश- हित में कर देंगे अपने प्राणों का बलिदान।
  आखिर ! यही तो है उनका स्वाभिमान l
 लेकिन इतने पर भी वो शोषित दलित व वंचितों को ,
              दिला कर मानेंगे ही उनका उचित सम्मान ।इतने दिनों तक खाए रबड़ी-मलाई ,
            इन्हें तो आज याद आई है लोगों की भलाई।
 खैर चुनावी रंग का होता है ,
                                 कुछ अनूठा अंदाज ।
जिसमें नेताजी जनहित के लिए ,
                    करना चाहते हैं कुछ नया खास।
जनता का भी है उन पर अटल विश्वास ,
          फिर भी नेताजी करेंगे उन सबका सत्यानाश ।
 हाय ! ये तौबा- तौबा कैसा है ,
                                लोकतंत्र का चुनावी रंग।
 जिसमें नहाकर घुल-मिलकर ,
                       सभी भेड़िए हो जाते हैं एक संग ।
                                        -  अभिषेक मिश्रा 
                    {इलाहाबाद विश्वविद्यालय ,प्रयागराज}

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: