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कहने को सब कह रहे-आते सभी न काम

संदीप कुमार सिंह 17 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 3600 0 Hindi :: हिंदी

#विधा:_दोहा छंद
#"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" 
कहने को सब कह रहे,आते सभी न काम।
खुद के चलें विवेक से,जीवन हो गुलफाम।।

कहने को सब कह रहे,लोगों का दस्तूर।
रहें दशा को देखते,खाएं तभी अँगूर।।

गलती तो होती रहे,करता रहूं सुधार।
कहने को सब कह रहे,करते ज्ञान फुहार।।

कहने को सब कह रहे,व्यर्थ करे उपकार।
हसरत की जब हो लड़ी,निश्चित मिलता प्यार।।

कहने को सब कह रहे,लगे नहीं कुछ दाम।
मुफ्त ज्ञान से तो यहां,चलता कभी न काम।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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