DIGVIJAY NATH DUBEY 24 May 2023 कविताएँ देश-प्रेम #दिग्दर्शन 4423 0 Hindi :: हिंदी
तलवार रखूंगा नहीं तलवार रखूंगा नहीं जब तक विजय का शंखनाद कानों में गुजेगा नही तलवार रखूंगा नहीं तलवार रखूंगा नहीं है प्रण यही अब राह में खुदने लगे बस खाईयां चल पड़े फिर आधिया या आग का गुबार उबले जलमग्न थल से थल हुआ या विश्व का निर्माण बदले हर तरफ से त्रासदी हो किंतु भटकूंगा नही तलवार रखूंगा नहीं चाहे कोई भी साथ हो या हो कोई ना साथ मेरे बढ़ चले हैं कदम अब बस दिवा के एकदम सबेरे छोड़ दी है सब विधा जीवन के माया की निशानी अब वही बस राह दिखता जहां अभी पहुंचा नहीं तलवार रखूंगा नहीं तड़ तड़ गिरे ये बिजलियां तारे जमीं पर आ डुबाएं लहरें हिलोरे ले रहीं हृदया के धड़कन को डराएं सूर्य का तप आ फटे या गिर पड़े पर्वत विरानी कड़ कड़ यही अब तिष्म देता ये तिश्म गटकूंगा नहीं तलवार रखूंगा नहीं जो भाव लेकर हूं चला वो भाव ही जीवन बना होने दो होते हैं अगर नाराज ये फूलों की कलियां रूठे अगर घर द्वार ये कर देंगे इनका भी भला एक बार बैठूं शाख पर विजया के सीना तान के फिर देखना बजने लगेंगी तालियां हर पाथ पे लेकिन अभी चलना है मैं भयभीत बैठूंगा नहीं तलवार रखूंगा नहीं तलवार रखूंगा नहीं ।।। दिग्दर्शन !