Kranti Raj 17 Jul 2023 कविताएँ दुःखद 5159 0 Hindi :: हिंदी
मेरी खमोशी जान ले लेगी कभी ये मै नही मेरी अंर्तमन की आवाज है रोज तडपते है,लेकिन अपनो की परवाह होती फिर भी अंर्तमन मे खमोशी ही खमोशी है पहले तो गैरो से डरते थे अब तो अपनो से डरते है झुठा इस हसीन सी दुनिया में सब ही तो बईमानों से डरते है मेरा क्या हुआ सब भुल गये अपनी कहानी को बस योहीं कहते है कभी न सोचा था ,वो सोचने को मजवूर करते है हमने उन्हें की बस वही सोचते है अब धडकन भी कह रही अब छोड दो उन्हे जो तुझसे दुर जाते है चुप रहना ही अच्छा है ,इस फिरंगी दुनिया से जो जलते है ,उनसे दुर रहने की कसम खाते है खमोश ही मेरा जीवन की गहना बन गया क्रान्तिराज अब हर ठोकर से डरते है ! कवि-क्रान्तिराज बिहारी दिनांक-17-07-23