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अध्यात्मिक चेष्टा-चलत्तें हैं राह मंज़ील को राहीं स्पनों का नगर बनाने को

Amit Kumar prasad 18 Oct 2023 कविताएँ समाजिक Through this poem, It has shown that, Every thing never to be profit, When goes to done survice of tree than he gives fruit. As that type merely, Devotion is the work of truth dedication. In this poem to take of every part to the nature tried to showing some way of deeds, And this is a very real truth, Who has said a most Saint that, Nature teaches of all the Universe. In this poem has given the sound of work. And by this poem, I am giving greeting of Lord and most of greet of all my reader as before, I hope that, To this poem will be meet most like and dearness as before. Now take enjoy of this poem and given love of my creativity. - Jai Hind...🌹 13949 0 Hindi :: हिंदी

चलत्तें हैं राह मंज़ील को राहीं, 
स्पनों का नगर बनाने को! 
स्पनें पलत्तें उन नैनों में, 
ज़ो ज़गत्तें विश्व ज़गानें को!! 
                 निद्रा कें अन्दर ज़गत्ती हैं, 
                 स्पनों के दिप का उज़ियारा! 
                 ज़ो खिलकर - मिलकर मंज़ील से, 
                 जगत्ती है चाह उसकानें को!! 
संत्तृप्त्त चेत्तना चाह अगाध, 
मंज़ील स्म रुप प्रभाकर सा! 
कोई पाकर बनत्ता प्रभावान, 
कोई सफ़ल महज़ दिखलानें को!! 
                   दिख - दिखा चाह दिखलाने का,
                   न मंज़ील ना हीं दिगन्त्ता हैं! 
                   मंज़ील, ईश्वर का राह लग्न, 
                   कोई पाकर साधु - संत्ता हैं!! 
चल - चल करके चलत्तें - चलत्तें, 
आ गया राह मंज़ील के निकट! 
कहत्तें हैं खुदा ज़ो चाह है मांगों, 
त्तेरा खुदा त्तुझे दे सकत्ता हैं!! 
                      मांगन से अल्प ही मिल्हें, 
                      सेवा से मिली अगाध! 
                      वो दुर्बल नहीं हैं महाबली है, 
                      जीन संग नाथों के नाथ!! 
विद्या कि चाह गर विद्वान से मांगों, 
गर चाह हैं धन धनमानं से! 
गर बल है चाह बलवान से मांगों,
भगवान ही मांगों भगवानं से!! 
                       सब त्तुरत्त ही मिल्हें न कछु विष्म, 
                       हर सम हर भाग गुणनं चारी! 
                      सब कुछ है लखत्त अंत्तरत्म का, 
                      ऐसे ही हैं वो त्रिपुरारी!! 
धन ज़ो मिले धनवान बने, 
और धन से बने विद्वान! 
आउर विद्धा ही बनावत्त बली सबहिन को, 
कह गए ज्ञान - विज्ञान ज़ोगी ज़ी कहिन ज्ञान - विज्ञान!! 
                        और भक्त मान धर भक्ती का, 
                        नीज़ चाहत्त का प्रकाश धरें! 
                        मांगन से पहले हरे - हरे, 
                        पश्चात्त चाह भी हरे - हरे!! 
हर हरण हरी हर ओम् - ओम्, 
है नमस्कार प्रभू हरी ओम! 
है रज़ा आपकि चाहत्त में, 
हम खुशी आपके रांहन में!! 
                          ज़ो देना वो अपनी खुशी से देदो, 
                          हम खुश हैं आपकि रज़ा में! 
                          यहां युं भी वाह - वाह है, 
                          यहां त्युं भी वाह - वाह है!! 
ज्यों खिलकर पुष्प करत्ती हैं सुगन्धित्त, 
नीज़ गुण का बदलाव दिखानें को! 
चलत्तें हैं राह मंज़ील को राहीं, 
स्पनों का नगर बनाने को!! 
                हर नगर बनाकर कोमल - निर्मल, 
                सत्त से सत्युग दिखलाने को! 
                स्पनें पलत्तें उन नैनों में, 
                ज़ो ज़गत्तें विश्व ज़गानें को!! 

कवी  : अमित्त कुमार प्रशाद...🌹
Poet : Amit Kumar Prasad...👌

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