नवीनतम समाजिक रचनाएँ
विभव में भोर हो जाए,,।।
कविता पेटशाली
मैं ,,जीयूं इस तरह , कि विभव में भोर हो जाए,
मैं,, जीयूं इस तरह ,की कविता हर ओर हो जाए,
देश ,लिखने वाले द्वेश नहीं लिखा करत
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कहानी कुछ कहती है
Ranjana sharma
ज्योति और राजेश की शादीशुदा जीवन अच्छे से बीत रही थी, पर राजेश की मां को ज्योति फूटी आंख नहीं भाती थी। वह बात - बात पे
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ग़ज़ल
Abhinav chaturvedi
जीने के तौर-तरीके मिलने से,
अज़िय्यत नही मिला करते हैं।
दो चेहरे एक से मिलने से,
नियत नही मिला करते हैं।
सिलसिला-
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कहां रही चूंक उनकी
कविता पेटशाली
मुनासिब नहीं मेरा किसी पर भी बरस जाना,।
मैं उस पगडंडी पर ,बिना धाप किए चल रही हूं,
जहां एक कांटा कुरेदता है , मेरी कदम
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