संदीप कुमार सिंह 07 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरे यह कविता समाज हित में है. जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभांवित होंगें. 3780 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:=दोहा छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" पहले जैसे अब कहाँ,मिले नहीं कुछ बात। कुछ तो काला दाल में,भीषण मय है रात।। पहले जैसे अब कहाँ,है लोगों में प्यार। नफरत में जीते सभी,करते हैं तकरार।। पहले जैसे अब कहाँ,उजड़ गए सब कूप। रौनक रहती थी जहाँ,बिगड़ गया है रूप।। पहले जैसे अब कहाँ,गाँव यार चौपाल। पता नहीं क्या है हुआ,लगते सब बेहाल।। पहले जैसे अब कहाँ,मिलता नहीं समीर। दूषित सबकुछ ही हुआ,होते सभी अधीर।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....