संदीप कुमार सिंह 17 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 3778 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_दोहा छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" आता है सच सामने,मंथन जब हो तेज। और दूध का दूध हो,मन में हो अंगेज।। आता है सच सामने,वक्त रहे अनुकूल। झूठों का फिर नाश हो,जीवन का यह मूल।। आता है सच सामने,निश्चित इसको जान। जिसको इसका भान हो,पाए हरदम मान।। आता है सच सामने,परदा जाए भाग। बेनकाब हो कर रहे,काला जो है नाग।। आता है सच सामने,यह भी यहां रिवाज। नत हो सबके सामने,खुल जाता सब राज।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....