Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

पिंजरे का पंछी

DINESH KUMAR KEER 25 Jan 2024 कहानियाँ समाजिक 3040 0 Hindi :: हिंदी

पिंजरे का पंछी  - सेठ जी और तोता की प्रेरणा दायक कहानी

एक सेठ जी और सेठानी जी हमेशा भजन - कीर्तन में जाते थे । सेठ जी के घर एक पिंजरे में तोता पाल रखा हुआ था । तोता एक दिन पूछता हैं कि, सेठजी आप हमेशा कहाँ पर जाते रहते हैं ? सेठजी बोले कि, भजन - कीर्तन में ज्ञान ग्रहण करने वाले भगवान की भगती के लिए जाते है । तोता कहता है, सेठ जी साधुओं - संतों - महात्माओं से एक प्रश्न पूछना कि मैं आजाद कब होऊंगा ।
          सेठ जी भजन - कीर्तन ( सत्संग ) समाप्त होने के पश्चात संत से पूछते हैं, कि 'महाराज हमारे घर पर एक तोता पाल रखा है उसने प्रश्न पूछा है कि वो आजाद कब होगा... ?'
          संत जी ऐसा सुनते ही बेहोश होकर गिर जाते है । सेठ जी, संत जी की हालत देख कर चुप - चाप वहाँ से निकल जाते है । घर आते ही तोता सेठ जी से प्रश्न करता है कि, सेठ जी संत ने क्या कहा । सेठ जी, तोता से कहते है कि, हे तोते, तुम्हारी किस्मत ही खराब है, जैसे - ही तुम्हारी आजादी का प्रश्न पूछते ही संत जी बेहोश हो गए । तोता कहता है कोई बात नही  है सेठ जी मै सब समझ गया ।
          दूसरे दिन सेठ जी सत्संग में जाने लगते है, तब तोता पिंजरे में जानबूझ कर बेहोश होकर गिर जाता है । सेठ जी उसे मरा हुआ मानकर जैसे ही उसे पिंजरे से बाहर निकालते है, तो वह तोता फुर्र - से आकाश में उड़ जाता है । 
          सत्संग जाते ही संत सेठजी से पूछते है कि, कल आप उस तोते के बारे में पूछ रहे थे ना, अब वो कहाँ हैं । सेठ जी कहते हैं, 'हाँ महाराज आज सुबह - सुबह वह जान - बूझ कर बेहोश हो गया, मैंने देखा कि वो मर गया है । इसलिये मैंने उसे जैसे ही बाहर निकाला तो वह फुर्र - से आकाश में उड़ गया ।'
          संत जी ने सेठ जी से कहा की देखो तुम इतने समय से भजन कीर्तन ( सत्संग ) सुन कर भी आज तक संसारिक मोह - माया के पिंजरे में फंसे हुए हो और उस तोते को देखो बिना सत्संग में आये मेरा एक इशारा समझ कर आजाद हो गया ।
          इस कहानी से तात्पर्य ये है कि हम सत्संग में तो जाते हैं ज्ञान की बातें करते हैं या सुनते भी हैं, पर हमारा मन हमेशा संसारिक बातों में ही उलझा रहता है । सत्संग में भी हम सिर्फ उन बातों को पसंद करते हैं जिसमें हमारा स्वार्थ सिद्ध होता है । जबकि सत्संग जाकर हमें सत्य को स्वीकार कर सभी बातों को महत्व देना चाहिये और जिस असत्य, झूठ और अहंकार को हम धारण किये हुए हैं उसे साहस के साथ मन से उतार कर सत्य को स्वीकार करना चाहिए ।

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

लड़का: शुक्र है भगवान का इस दिन का तो मे कब से इंतजार कर रहा था। लड़की : तो अब मे जाऊ? लड़का : नही बिल्कुल नही। लड़की : क्या तुम मुझस read more >>
Join Us: