Baba ji dikoli 09 Aug 2023 कविताएँ धार्मिक काव्य/कहानी/साहित्य/आलेख/निवंध/कविताएं/google/instagram/twitter/Bing/blogger 5634 0 Hindi :: हिंदी
ईश्वर ने ये कैसा घटना चक्र रचा। नियति की गोद में क्या पल रहा। क्या कहॉ?.... एक कुमारी कन्या ने सुत जना समाज के भय से बो कुछ ऐसी थी अकुलाई भूल कर के ममता वह निज सुत को मृत्यु के समक्ष है रख आई किन्तु यह अंत न था, वह भी सूर्य अंश था जन्म से ही संघर्ष पथ पर वह चला छत्रिय कुल का दीपक अब सूत के कर लगा। छोड़ा जिसे निज जननी ने वो अब राधा माँ से मिला। कुंती का अभाग्य जगा,राधा को सौभाग्य मिला। माँ राधा ने उसे बड़े प्यार से पाला और पिता ने निज अधर से लगाया। अब कुमार की अवश्था परिवर्तन का समय है आया क्या करे समाज का भेद वह सह न पाया। स्व चित्त में उसने संकल्प उठाया फिर नियति ने उसे गुरु परशुराम का मार्ग दिखाया। थी शिक्षा की लालसा और समाज की घ्रणा वस इसी कारण वह गुरु समक्ष सत्य बोल न पाया। उसने गुरु से अपना वर्ण छिपाया। जान ब्राम्हण उसे गुरु ने अपना सारा भेद सिखाया। गुरु परसुराम से पाकर शिक्षा, सूर्य सूत कुछ और निखर आया पर उसका भेद गुरु से और अधिक न छिप पाया होकर क्रोधित गुरु ने उसे अभिशाप सुनाया। होकर दुखित फिर कर्ण ने निज व्यथा को गुरु समक्ष बतलाया। जान व्यथा फिर कर्ण की गुरु नयन ने नीर बाहय। श्राप के लिए बढे कर फिर कर्ण के कंधों पर आये। स्वहृदय से लगाकर फिर गुरु ने आशीष वचन सुनाये। कर शिक्षा संपन्न फिर सूर्य पुत्र, सूत पुत्र वन निज गृह आये। पर वो योद्धा हठी और अडिग था समाज की तृष्णा से व्यथित था। फिर कर्ण ने हुँकार भरी ,और कर्ण की प्रत्यांच्या चढ़ी। बढे वो स्वाभिमान को, नष्ट करने हस्तिनापुर वाशियों के अभिमान को, गुरु द्रोण के अहंकार को,और अर्जुन के भ्रम को। देख वीरता ऐसी सभी अकुलाते थे बस कौरव देख सुख पाते थे। द्रियोधन ने कर्ण की वीरता का सम्मान किया। कर्ण ने मित्रता और जीवन उसे उपहार दिया। जिस अंग को समाज ने अछूत कहां। वही आज अंग देश का शाशक बना। अब घटना क्रम कुछ आगे बढ़ा । नियति ने महाभारत संग्राम रचा। फिर से सूर्य सुत ने हुँकार भरी,पांडव सेना व्यथित हुई। जब राण में राधे का धनुष उठा, लगता था अर्जुन का गांडीव कुछ फीका। देख वीरता ऐशी माधव मन ही मन मुश्काते थे। देख कर्ण को देवता भी सर झुकाते थे। माधव ने कहॉ सुनो अर्जुन यदि और देर अब लगाओगे। तो निश्चित ही यह रण हर तुम जाओगे। माधव ने माया का निर्माण किया, अर्जुन ने भी दिव्यास्त्र आव्हान किया। राधेय अब भुसाहि हुआ ,उधर सुयस्त के लिए सूर्य ढला। देखो सूर्य संग सूर्यश चला। लेखक✍️✍️✍️ बाबा जी डिकोली डिकोली,झाँसी(उ०प्र०) #baba ji dikoli