Manasvi sadarangani 30 Mar 2023 आलेख बाल-साहित्य लोकडॉउन की कहानी बच्चों की जुबानी 24883 0 Hindi :: हिंदी
रात हो चुकी थी और मैं बहुत गुस्से में था ।इस कोरोना ने बहुत हद कर दी है ये कहकर चिल्ला रहा था। पापा ने समझाया कि लॉक डॉउन में ईश्वर की रजा को समझो, मेरे पूछने पर की वो कैसे तो पापा ने कहा कि आंखे बंद करो और आज पूरे दिन में जो बदलाव तुम्हारी दिनचर्या में आया है उसे महसूस करो और मुझे उस समय जो महसूस हुआ वो कुछ इस तरह था- आज सुबह जब टहलने छत पर गया तो पक्षियों की आवाज कानों में आने लगी थी जो इससे पहले सिर्फ मोबाइल में सुनी थी शुद्धता क्या होती है हवा में आज बिना लोम अलोम करे ही महसूस की थी, जब नीचे आया तो पूरा घर मिलकर रामायण का आनंद ले रहा था, इससे पहले तो कोई अपना मोबाइल भी आपस में नही बांटता था आज वहीं सब मिलकर नए पुराने सब तरह के खेल खेलरहे थे कामवाली बाई जो एक दिन भी छुट्टी ले ले तो मम्मी उस पर चिल्ला देती थी आज वहीं इंसानियत के नाते मम्मी उसे छुट्टी दे रही थी और अपना ध्यान रखने के लिए कह रही थी दादा दादी बाहर ना जाए इस कारण पापा मम्मी ने उन्हें व्यस्त रखने के लिए मनोरंजन का हर संभव साधन तैयार रखे थे। पापा जिनके पास कभी भी समय नहीं था आज वो हमे पढ़ाई करने मैं मदद कर रहे थे। आज का तो अदभुत ही नजारा था मम्मी सो रही थी और पापा ने शाम कि चाय बनाई थी। सच में अब मैं पूरी तरह संतुष्ट था हमेशा तो नहीं पर कुछ दिनों के लिए ये नजारा बहुत प्यारा था मनस्वी सदारंगानी