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बुजुर्ग भालू भेड़िया

राकेश 29 May 2023 कहानियाँ अन्य दोस्त भालू भेड़िया, भालू भेड़िया का रेडियो, बुजुर्ग भालू भेड़िया 8286 0 Hindi :: हिंदी

उत्तराखंड एक जंगल में भालू और भेड़िए की दोस्ती मशहूर थी।

ज्यादा आयु होने की वजह दोनों भागदौड़ नहीं कर पाते थे। इसलिए दोनों धीरे-धीरे घूमते फिरते अपना पेट भरते रहते हैं।

दोनों रात होने से पहले अपनी गुफा के पास आ जाते थे और गुफा के पास बड़े से अमरख के पेड़ के नीचे पहाड़ी पत्थरों के चबूतरे पर लेट बैठ कर आराम करते थे। 

इनके आने के बाद बंदर लंगूर गीदड़ आदि जानवरों के बच्चे इनके पास उछल कूद कर के खेलते रहते थे।

जानवरों के बच्चों को उछल कूद करते देख इनका भी मन करता था उछल कूद करके खेलने का इसलिए यह भी कभी-कभी उन जानवरों के बच्चों के साथ उछल कूद करके खेलने लगते थे। 

और आयु ज्यादा होने की वजह से अमरख के पेड़ के चबूतरे से या किसी अन्य ऊंचाई से लुढ़क कर गिर जाते थे। ऊंचाई से गिरने की वजह से जब भालू और भेड़िया दर्द से तड़पने लगते थे, तो जानवरों के बच्चे बड़ी मुश्किल से इन्हें जमीन से उठा कर पहाड़ी पत्थर के चबूतरे पर लिटा देते थे।

और उस दिन भालू और भेड़िया चोट लगने की वजह से पूरी रात दर्द से तड़पते थे।

और सुबह दर्द कम होने के बाद अपना पेट भरने के लिए दोनों घने जंगल में चले जाते थे।

और यह शाम को जब अपनी गुफा पर वापस आते थे, तो जानवरों के बच्चे इनके पास आकर दोबारा खेलने लगते थे। 

जानवरों के बच्चों को खेलता देख इन दोनों का फिर दोबारा उछल कूद कर के खेलने का मन करने लगता था, इसलिए दोनों आपस में बात करते थे, की ऊंचाई से गिरने से चोट लग जाती है। 

इसलिए दोनों उस चबूतरे पर ही लेट कर धीरे-धीरे इधर-उधर चबूतरे पर लुढ़क ने लगते थे।

इनके जंगल से थोड़ा दूर एक गांव था, एक दिन बंदर और लंगूर के बच्चे गांव के खेतों की तरफ घूमने फिरने चले जाते हैं।

गांव के एक खेत में एक किसान रेडियो पर फिल्मी गाने चलाकर अपने खेत में काम कर रहा था।

और बंदर लंगूर के शैतान बच्चे उस किसान का रेडियो वहां से उठाकर अपने जंगल में ले आते हैं।

बंदर लंगूर के बच्चे किसान का वह रेडियो भालू और भेड़िए को दे देते हैं।

भालू और भेड़िया अब उस रेडियो पर जंगल के सारे जानवरों को देर रात तक गाने सुनाने लगते हैं। रेडियो पर गाने सुनने से मनोरंजन के साथ-साथ उनके जीवन का अकेलापन भी दूर होने लगता है।अब दोनों दोस्त पहले से ज्यादा खुश रहने लगते हैं।

एक रात भालू भेड़िया रेडियो को पहाड़ी पत्थरों के चबूतरे पर रखकर खुद जमीन पर सो जाते हैं। उसी रात जंगल का काला चीता और गैंडा भालू और भेड़िए को दुखी करने के लिए उनका रेडियो चुराकर पहाड़ी के ऊपर छुपा देते हैं।

सुबह भालू और भेड़िया अपना रेडियो ना मिलने के कारण बहुत दुखी हो जाते हैं। और वह इतन ज्यादा दुखी हो जाते हैं कि अपना  सर पकड़ कर चबूतरे पर बैठ जाते हैं।

और रो-रोकर सब जानवरो को बताते हैं कि हमारा जान से प्यारा रेडियो चोरी हो गया है।

और जानवरों से रो-रोकर यह भी कहते हैं कि "हम जवानों की तरह उछल कूद करके नहीं खेल सकते है, इसलिए रेडियो ही हमारे मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन था।

भालू और भेड़िए को दुखी देखकर गैंडा और काला चीता गले मिल मिल कर बहुत खुश होते हैं। और आपस में कहते हैं कि दोनों को दुखी करने में बड़ा आनंद आ आ रहा है। 

जब गैंडा और काला चीता आपस में यह बात कर रहे थे तो एक सूखे पेड़ के पीछे छुप कर जंगली बिल्ली यह बात सुन रही थी। 

और बिल्ली उसी समय जंगल के बाकी जानवरों के पास जाकर गेंडे और काले चीते की इस हरकत के बारे में सबको बता देती है।

गेंडे और काले चीते को पता चल जाता है कि जंगली बिल्ली हमारी जानवरों के सामने चुगली कर रही है।

इसलिए गुस्से में गैंडा और काला चीता बिल्ली की टांग पकड़ कर उसे खींचते हुए पहाड़ के ऊपर से खाई फेंकने जाते हैं। 

और जंगली बिल्ली को जंगल के बाकी जानवर आकर गेंडे और काले चीते से बचा लेते हैं। 

और सारे जानवर गेंडे और काले चीते को जमीन पर गिरा गिरा कर बहुत मारते हैं।

लड़ाई झगड़े का शोर सुनकर भालू और भेड़िया वहां आकर गेंडे और काले जीते उन जानवरों से बचाते हैं।

इसलिए गेंडे और काले चीते को अपनी गलती का एहसास हो जाता है, और वह भालू और भेड़िए के पैर पकड़कर माफी मांग कर कहते हैं कि "आज के बाद हम बुजुर्गों का पूरा सम्मान करेंगे उनका मजाक नहीं उड़ाएंगे।"

कहानी का संदेश-युवाओं को कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे बुजुर्गों का मन दुखी हो और उन्हें तकलीफ हो।

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