Ratan kirtaniya 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य प्रेमी अपने प्रेमिका को अपना जीवन को समपर्ण कर देता है 75633 0 Hindi :: हिंदी
मेरे हृदय में तुम हो - पर मेरे प्रेम से अलक्षित तुम हो , तारों से झिलमिलाता आसमान ; अंग - अंग में तेरी प्रेम का पहन - वसन - मुस्कान तेरी चाँद - तेरे रंग में रंगा आसमान , तेरी प्रेम मोह किया मेरे हृदय को गहन , तुझे दुल्हन बनाके लाऊँ डोली में - मेरी अभिलाषा का उठता अर्थी डोली में , विरह में आज अकेला हूँ - रोता हृदय मेरा चित्त की टोली में । मधुमय वाणी मृदु - मृदु पवन में - कोई प्रेम संदेश है पवन में ; उन्मन मचा रही मौन मन में , हे प्रिया ! रह के दूर - मत करों आतुर हृदय को मजबूर ; पास आ जाओ या मुझे बुला लो - बना लो तेरी माँग का सिन्दूर । आतुर हृदय नयन में नहीं नींद - चाँद में चाँद सी चहेरा को देखता रहा ; जल - थल - नल में खोजता रहा , जलद थी तेरी नयनों की काली , बिंदिया सिन्दूर किरणों की लाली - मैं ने देखा - सोता - जगता नयन जब खोली , देखा कोमल पुष्पों में तेरी होठों की लाली , जैसी बढ़ती गई धूप - तेरी यौन - विस्तार और बढ़ती गई रूप - मुझे विरहाग में जलाती गई चढ़ती धूप - आघात कैसे करता हे प्रिया ! मेरे हृदय में तुम हो - इसलिए मैं हूँ चुप । निच्श्रिंत जग जब सोता है ; मेरा हृदय तेरे लिए रोता है , उनींदा नयन से अत्रु झड़ता है - विप्लव हृदय व्रज हूंक गरजता है , फिर भी हृदय तेरी रंग में सजता है , मेरे हृदय में तुम हो - हृदय प्रेम तुम्हीं से करता है । मेरे जीने का मनोरथ हो तुम - देख लेना जीवन है कितना प्यारा - हटा दो घिन का जलद सारा ; निकल जाने दो धूप ; चमक उठेंगी प्रेम रूप , सजा दो हृदय हमारा - सज़ा ना दो तुम में विलिप्त है हृदय हमारा , धन्य हो जाऊँ जो मिले प्रेम तुम्हारा - तेरी वियोग में प्राण त्याग देगा देह हमारा , हे भाग्य विधाता - आज हृदय मेरा ना रोता - तू अगर प्रेम मेरे नसीब में लिखा होता - तू ने उसे मेरे नसीब में क्यों नहीं लिखा - क्या मेरी हृदय व्यथा तू क्यों नहीं दिखा ? तुम हो मेरे हर अभिलाषा ; हृदय तेरी प्रेम का प्यासा , ज्येष्ठ की कड़ी धूप - कौन जला रही - सामने आओ - मत छुपाओ अपना रूप ; ध्रुम की मीठी छाया में - बैठी घुघ्घू गीत गती प्रेम माया में , तू गई कैसी मुझे भूल ! मेरे हृदय में खिल रहा प्रेम फूल ; हे प्रियतम ! मत रहो दूर - उन्मन हृदय की तुम हो कूल ; तुम पे ही रूक जाता हूँ , तेरी हृदय से लग जाने दो ; विरहाग को अत्रु से बुझ जाने दो - ध्रुम की मृदु छाया में बैठके - गीत प्रेम का गाने दो ; मेरा अतंका क्षण - तेरी हृदय में रहके प्राण मुझे त्यागने दो । आँख मिचौली खेल रहा - जलद और धूप - यहीं है तेरी केश और रूप - नव दुल्हन आज वसुंधरा ; तृण - तृण कण में आभूषण प्यारा , मेरे हृदय में बस गया रूप तेरा - हो तुम मेरे हृदय नीड़ में , तुझे खोजता रहा - मेरी पागल हृदय - मैं तो घायल हूँ ! तेरे वियोग में जी नहीं पाऊँगा ! मर जाऊँगा ! तेरी वियोग तीर में । रतन किर्तनिया मो :- 9343698231 9343600585