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dowry system

shivam ratna verma 30 Mar 2023 आलेख समाजिक indian people 66568 0 Hindi :: हिंदी

                                                                                                                           बात ‘दहेज ’ की

अगर किसी घर मे लडक़ी जन्म ले तो शायद   उतनी खुशी  नही होती जितनी की लड़का पैदा होने पर होती है। आखिर ऐसा क्यों ? हम ऐसा क्यों सोचने लगे ? लड़की जब जन्म लेती है तो पिता के कंधों पर लड़की के पालन पोषण के साथ-साथ सबसे बड़ी जिम्मेदारी उसकी शादी की हो जाती है । माता-पिता को लड़की की शादी की चिंता सताने लगती है और जैसे-जैसे लाडली बिटिया बड़ी होती है। वैसे-वैसे मां-बाप की चिंता बढ़ती जाती है लाडली बिटिया की शादी करनी है उसके लिए पैसा इकट्ठा करना है, भले ही लड़की अच्छी पढ़ी-लिखी क्यों ना हो , दहेज तो देना ही पड़ेगा, ये तो रिवाज यह तो समाज में होता आया है। लड़के के दरवाजे जाओ तो लड़के वाले यह नहीं पूछते कि लड़की कितनी पढ़ी लिखी है , आपकी बिटिया संस्कारी है कि नहीं। वे यह पूछना नहीं भूलते कि कितने तक की शादी हो जाएगी यह तो सबसे पहले पूछा जाने वाला वाक्य है अगर लड़का सरकारी नौकरी करता होगा या अच्छा कमाता होगा तब तो बात ही अलग है लड़के की सैलरी अगर 20,000 तो दहेज 10 लाख , 30,000 तो 15 लाख, 50,000 तो दहेज 20 लाख, 80 हजार तो 40 लाख, उसको दहेज चाहिए ही। लड़के वाले अपनी कमाई के हिसाब से दहेज मांगते हॉं जितनी ज्यादा सैलरी उतना ज्यादा दहेज चाहिए, अगर शादी में दहेज कम मिला तो लड़की को ताने सुनने पड़ते हैं कि तेरे बाप ने क्या दिया ? देखो उनको कितना दहेज मिला है बेचारी लड़की ससुराल वालों के ताने सुनती है मानसिक प्रताड़ना सहन करते हुए जीवन बिताती है| इसमें कई लोग तो ऐसे शामिल होते हैं जो अच्छे पढ़े-लिखे बुद्धिमान उच्च पदों पर आसीन, पी०एच० डी० करे हुए, डॉक्टर, इंजीनियर, राजनेता, वकील, टीचर, उद्योगपति, व्यवसाई और काफी अच्छी सर्विस वाले लेकिन भाइयों हमें तो अच्छा खाँसा दहेज चाहिए, अगर हमारे पड़ोसी को इतना मिला तो हमें उसे ज्यादा ही चाहिए कम ना होने पाए । पापा भी कहते हैं - अरे देख देखो गुड्डू की मम्मी हमारे मौसी के लड़के की शादी कितनी अच्छी हुई , कितना सारा दहेज में सामान मिला और नगद कैश भी ।  हम भी अपने लड़के के लिए ऐसा ही परिवार ढूंढगे ऐसी शादी होगी, कि पूरा मोहल्ला तमाशा देखेगा ।
                            इस भारत की भूमि के नागरिक जिन्होंने राजा राममोहन राय,   दयानंद सरस्वती,  डॉ. बी. आर. अंबेडकर और ज्योतिबा फुले को पढ़ा और उनके विचारों को पढ़ा, लेकिन हमें उनके विचारों का क्या,  हम्हे उनका तब तक काम जब तक हम नौकरी की तैयारी करते है,  कॉलेज में पढ़ते हैं, नौकरी मिलने के बाद हम उनके विचारों को भुला देते हैं। हमें समाज सुधार से क्या लेना देना,  हमारे सुधारने से क्या देश सुधर जाएगा ? शायद ऐसा सोचते हैं हम 
                                                                  हमने कभी  उस बाप की आंखों में झांक कर नहीं देखा, जो बड़ी उम्मीद से अपनी लड़की के लिए रिश्ता लेकर आता है और हम कहते हैं कि इतना दहेज चाहिए। उस बाप ने सोचा था कि लड़की को पढ़ा ¬- लिखा लेंगे तो शायद अच्छा लड़का मिल जाए, अच्छा घर परिवार मिल जाए उसकी यह ख्वाहिश अधूरी ही रह जाती है चंद पैसों के कारण, लड़की भी अपने आप को कोसती है अगर मैं लड़का होती या मेरे पापा अमीर होते तो शायद यह उदास चेहरा ना होता उनका । हमने यह कभी नहीं सोचा, जो मां बाप अपनी लाडली बिटिया को इतने लाड प्यार से पालते हैं और एक दिन वो उसे, किसी दूसरे को सौंप देते हैं, अपने से पराया कर देते हैं ये क्या कम है।।।।।  

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