DINESH KUMAR KEER 09 May 2023 कहानियाँ समाजिक 5398 0 Hindi :: हिंदी
*लकिरी पहेलियां* *_कभी-कभी अनीश निकेतन की बालकनी में बैठ जाता हूं, और घंटो देखता रहता हूँ, अपने हाथों की हथेली की लकीरों को जो खिंची है। आड़ी-तिरछी, सीधी-सपाट, वक्राकार या फिर समानांतर कही कोन कही तिकोन कही चौकोर जालीदार लहराती बलखाती हुई। एक दूसरे को काटती हुई, टूटती-जुड़ती, ढेरो समीकरणों व ज्यामितीय आकृति को बनाती गहरी, मोटी, पतली ये छोटी-बड़ी रेखाएं बताती जिंदगी का हिसाब-किताब समझना चाहती हूँ। पर नही समझ पाता, तकदीर का बेहिसाब जवाब जो समेट दिया खुदा ने, इन छोटी सी हाथों की हथेलियों में वो, सम्पूर्ण सच ख्वाबो का जाल ईश्वर का दर्शनशास्त्र जिंदगी का जोड़-घटाना, उतार-चढ़ाव दिलो का राज सिमटी है। कहानियाँ लगा लेता पंडित, ज्योतिषी जाने कैसे लकीरो का राज भाग्य रेखा, धन रेखा, वैभव रेखा, विवाह योग, संतान योग आदि जाने कितनी लकीरो का खेल दिखाता, मेल-बेमेल रेखाएं किस्मत के बनने बिगड़ने का डूब जाता हूं। इनके गर्त की गहराइयों में सोचता हूं, बहुत-सा नाच-नचाती है, ये लकिरी पहेलियां सम्पूर्ण जिंदगी बुझाती पहेली इन जादुई लकीरो के जग मे खोजते रहते इसकी कुंजी लेकर असफल प्रयास खुद के लिए परिवार के लिए भूत, भविष्य, और वर्तमान का ऐसा गणित जो समझ नही आता बंद मुठ्ठियों में जानता हूं। फिर भी लगी रहता हूं, इस नाउम्मीदी के खेल में उम्मीद की लकीरो को ले रोज सुबह चूम लेता हूं। खुदा के इस तिलस्मी लकीरो के संसार को सहला लेता हूं। जो भी हो पर तुम सब बंद हो मेरी मुठी में...._*