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कामगारों में से ही एक दिन

Sunny Kumar 24 Jun 2023 कविताएँ समाजिक मजदूर की व्यथा, majdur ki Vyatha, majdur par kavita 8510 1 5 Hindi :: हिंदी

मजदूर की व्यथा

वह एक ऐसे दिन थे
जब सभी खुश रहते थे
काम–काज सब करते 
खुशी–खुशी जीते थे

कामगारों में से ही एक दिन, एक कारीगर बोला
अपने मन की बातें, सब के सामने खोला
बोला मैं, आप सब को, आपका हक दिलाउंगा
अधिपति से हम सब का, कुछ मजदूरी बढ़बाऊंगा

वह सही बोल रहा था
पर सही समय नही था
लगन के उस सीजन का, पूरा माल बना हुआ था
मांग जो उसने लिया था, लगभग पूड़ा हुआ था

अभी भी इस सीजन का, कुछ समय बचा हुआ है
पर मंडी में अब कुछ, उथल–पुथल नहीं है
मजदूर अधिपति से बोला, मजदूरी मेरी बढ़ाओ
अधिपति श्रमिक से बोला, इस सीजन काम चलाओ

अगले सीजन से, नई मजदूरी दूंगा
आगे के व्यापार में, इसको समाहित कर लूंगा
मजदूर ने एक ना माना, बोला अब हम चलतें हैं
बिहार–झारखंड में अब, यह ऐलान करतें हैं

कामगार भाई अब, सब घर को आ जाएंगे
नई मजदूरी के बिन, न कोई काम करेगें


सभी अधिपतियों ने देखा, समस्या अजब है आई
सभी अधिपतियों का, सभा एक बुलाई
अधिपतियों सब मिलकर, एक निर्णय लेते हैं
व्यापार अभी नहीं है, थोड़ा विराम लेते है

अगले नई सीजन जब, हम व्यापार करेगें
सभी श्रमिकों को, हम काम पर बुला लेंगे
श्रमिक सब घर बैठे, अपनी व्यथा को जोते है
नेता हैं जो उनके, मौज मनाया करतें हैं। 

~Sunny Kumar

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Sunny Kumar
Sunny Kumar धन्यवाद

9 months ago

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