Bholenath sharma 27 Jan 2024 कविताएँ समाजिक गाँव भूले नहीं है। 4830 0 Hindi :: हिंदी
भले ही बस गये है रोटी के लिए शहर, गांव क्या है ये हम भूले नहीं है। बंद कोठरी में हम बेमन रहते यहाँ , घर का खुला आँगन हम भूले नहीं है। गर्मीयों में दुपहरी बिताते थे जहाँ, उस पीपल के छाँव को हम भूले नहीं है। ले जाते थे गायों को चराने जहाँ , उस बगिये को हम भूले नहीं है। कुछ मजबूरियों के कारण रह रहे है वहाँ , मगर गाँवो कों हम भूले नहीं है ..