akhilesh Shrivastava 18 Apr 2023 कविताएँ बाल-साहित्य इंसान की उम्र बढ़ जाने के बाद हमेशा उसे अपने बचपन के दिनों की याद आती है 6916 0 Hindi :: हिंदी
*बचपन के दिन* बचपन के दिन फिर आ जाएं काश!हम ऐसा कुछ कर पाऐं मां के आंचल में छुप जाएं उनकी लोरी फिर सुन पाएं प्यारी सी निंदिया ले पाएं सुंदर सपनों में खो जाएं।। पापा के कंधे पर बैठकर घर के आंगन में घूम आएं डांट पड़े जो पापा जी से दादी की गोदी छुप जाएं।। मां के हाथों के खाने का फिर से हम आनंद उठाएं घर के गाय की दूध -मलाई का स्वाद हम फिर से पाएं।। कच्चे मिट्टी के घर में हम पक्के रिश्तों को फिर पाएं घर के आंगन में सोकर हम सुख चैन की निंदिया पाएं ।। चाचा चाची फिर मिल जाएं नानी जी से सुनकर किस्से हम मौज मस्ती पा जाएं बचपन के दिन फिर आ जाएं दादा दादी से संस्कारों की हम उत्तम शिक्षा पा जाएं साथ -साथ घर में रहने का हम फिर से आनंद उठाएं।। खेतों की हरियाली से हम अपने मन को फिर बहलाएं गांव की मिट्टी की खुशबू की महक कभी हम भूल न पाएं। दोस्त हमारे फिर मिल जाएं उनके संग हम मौज मनाएं बचपन की यादों में खोकर आपस में घंटों बतियाएं।। आमों की अमराई में हम झूले का आनंद उठाएं गांव की नदी में तैर -तैरकर हम सब खूब खुशी मनाएं। काश!हम ऐसा कुछ कर पाएं गांव में जाकर फिर बस जाएं बचपन के दिन फिर आ जाएं....... रचयिता ---अखिलेश श्रीवास्तव जबलपुर
I am Advocate at jabalpur Madhaya Pradesh. I am interested in sahity and culture and also writing k...