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समाज

Rasika Verma 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक समाज हमारा कातिल हैं 48207 0 Hindi :: हिंदी

ये समाज एक तेज तलवार है
इसमें जीत भी हार है।

इंसानियत तो अब कही है ही नहीं
हर तरफ बस लोगों में तकरार है
ये लोग जो  हैं बड़े होते बेरहम हैं
लोगो पे ना जानें कितने करते सितम है।

लोग जो कहते वो करते नहीं
खुदा से भी अब तो डरते नहीं
समाज में पाप इतना बड़ गया है
फिर पापी जिंदा हैं क्यू मरते नहीं।

किसी की भावनाओं को तोड़ देते है
किसी को सफर में तन्हा छोड़ देते हैं।
किसी को मंजिल का देकर लालच
अक्सर उनके रास्तों को मोड़ देते है।

किसी की खुशियों को वो गम में बदलते है
किसी को गिराकर वो खुद सभलते है
किसी के घर को उजाड़कर कर
बड़ी आसानी से खुद बचकर निकलते है।

इस समाज में जीना मुश्किल है
क्योकी ये समाज हमारा कातिल है।


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