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कुछ सवाल - कुछ जवाब न कोई कलम न कोई किताब रखता हूं

Onkar Verma 29 Jan 2024 कविताएँ समाजिक philosophical view point 2583 0 Hindi :: हिंदी

कुछ सवाल - कुछ जवाब

न कोई कलम, न कोई किताब, रखता हूं
पल भर की जिंदगी है यह सोच
न कुछ लेने का, न कुछ देने का, हिसाब रखता हूं........
न अलीशान महलों की उम्मीद करता हूं
न महंगी गाड़िओं का शौक रखता हूं
बस जिंदगी अच्छे से चल जाये
यही सोच रखता हूं……………………………..
कहते हैं, हर घर महल हो सकता है
पर हर महल, घर नहीं होता
प्यार की दौलत हो जहां
ऐसा हर दर नहीं होता
यही सोच, छोटी - छोटी ख्वायिशें
छोटे - छोटे ख़्वाब रखता हूं..............
न कोई कलम,न कोई किताब,रखता हूं
पल भर की जिंदगी है यह सोच
न कुछ लेने का, न कुछ देने का, हिसाब रखता हूं…

खुशियों से भरा हर पल हो
उम्मीद से भरा हर कल हो
सभी की जिंदगी में  अमन हो,चैन हो 
न कोई दुखी हो, न कोई बेचैन हो
न कोई अमीर हो,न कोई गरीब हो…………………………
ख़ुदा की महर से सबका एक सा नसीब हो
कितना अच्छा हो गर ऐसा हो जाये
ख़ुदा की इस सुन्दर दुनियां में
हर शख्स ख़ुदा के जैसा हो जाए
बस हर पल मन में ऐसे ही विचार रखता हूं
कुछ ऐसे ही ख़्यालात रखता हूं..........
तभी तो...
न कोई कलम, न कोई किताब, रखता हूं
पल भर की जिंदगी है यह सोच
न कुछ लेने का, न कुछ देने का, हिसाब रखता हूं..............
पल का पता नहीं, वर्षों का सामान क्यों ?
सांसों की खबर नहीं फिर इतने अरमान क्यों ?
छीना झपटी,लाग लपेट क्यों ?
हर पल धोखा और फरेब क्यों ?

मेरे शब्द मेरी पहचान

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