संदीप कुमार सिंह 05 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 15386 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_रोला छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" धर्म घटे हैं आज,हुआ क्यों कर अब ऐसा। नहीं रहा संतोष,हुआ सबकुछ अब पैसा।। बिकता है प्यार,सर्वत्र स्थापित धोखा। ऐसा अब संसार,नहीं मिलता है चोखा।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....