Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

मेरे बचपन का गांव- जहां मेरा बचपन बीता था

Poonam Mishra 23 Nov 2023 आलेख समाजिक मेरी बचपन के गांव की एक झलक 15376 1 5 Hindi :: हिंदी

मेरे बचपन का गांव
दिनांक 23/11/2023
-----------
आज कई वर्षों के बाद मुझे अपनी मायके के गांव जाने का अवसर मिला।
 जहां मेरा बचपन बीता था
 कुछ समय पश्चात मैं अपने  पिताजी के पास शहर आ गई शहर से ही मेरी पढ़ाई लिखाई हुई और वहीं से मेरी शादी हो गई फिर मुझे दोबारा गांव जाने का मौका नहीं मिला 
 मैं शादी के बाद अपने घर गृहस्ती में इतनी व्यस्त हो गई थी कि मुझे कहीं भी आने जाने का कम ही मौका मिलता था ।
पता नहीं क्यों?
 उम्र के इस मोड़ पर जब मैं अपने शहर की भाग दौड़ भरी जिंदगी से निकल कर गांव की इस खूबसूरत नजारों को देखने का मौका। मिला मैं चल पड़ी अपने गांव की तरफ जब मैं गांव की गली के मोड पर पहुंची तो मैंने देखा कि वह बगीचा जहां मैं बचपन में जाकर मीठे आम खाती थी। उस बगीचे में जाकर मैं कुछ देर के लिए रुक सी गई न जाने क्यों ? मुझे ऐसा लग रहा था की बगीची के हर एक पेड़ मुझे देखकर बहुत खुश हो गए हैं  अचानक से ठंडी हवा चलने लगी उस हवा के झोंके से मुझे भी उतनी ही प्रसन्नता हो रही थी
मैं छोटे बच्चों की तरह इधर-उधर उस आम के पेड़ को खोजने लगी जिसके फल सबसे ज्यादा मीठे होते थे और हम सब बच्चे उस पेड़ के आम को मीठहुवाआम कहा करते थे ।
मैं  उस पेड़ के पास पहुंच गई मैंने देखा कि वह पेड़ आज भी वैसे ही है न जाने क्यों?
 मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरे आने से बगीचे के सारे पेड़ की हवा कुछ ज्यादा ही चलने लगी। जैसे यूं कहें कि सभी पेड़ मुझे देखकर खुश हो रहे थे कि मैं इतने दिनों के बाद उन सब से मिलने के लिए आई हूं ।
मैं जब उस आम के पेड़ के पास पहुंची तो न जाने क्यों? क्या सोच कर मैं एक छोटे बच्चों की तरह उसे पेड़ से लिपट गई ।
जैसे मेरा दिल कह रहा हो कि मुझे आज भी तुम्हारी याद आती है ।
मैं उसे नीम के पेड़ को भी ढूंढने लगी जिसे मैं सुबह उठकर दातुन किया करती थी जब मैं उसे नीम के पेड़ के पास पहुंची ।
तो मैं यहां भी एक छोटे बच्चों की तरह उस पेड़ से गले लग गई । मैं जब कभी-कभी अपनी सखियों के साथ में आती ,तो एक भोजपुरी गीत है जो कि कभी-कभी हम सब सखियां गाती थी ।
जो कि कुछ इस प्रकार से था।



 "निमिया क, डार जिन काटा ए पापा !
निबिया चिरैयवा बसेर !
होत बिहान पापा !
चिरैया उड़ जिइहै  !
रह जइबा पापा तू अकेल !
निबिया क डार जिन काटा ए ,
भैया!
 निबिया चिरैया बसेर ,
होत बिहान भैया चिरैया 
उड़ जइहे है र
ह जेइबा  भैया तू अकेल ।"


यह गीत कभी-कभी गांव में शादी विवाह के अवसर पर गाया जाता था ।
और हम कभी यूं ही नीम के पेड़ के नीचे आकर सखियों के साथ  साथ यूं ही गाते थे।शायद इस गीत में पेड़ पर रह रही चिड़ियों की तुलना लड़कियों से की जाती थी ।जो की शादी के बाद अपने ससुराल चली जाती थी ।
और पेड़ न काटने की सलाह दी जाती थी ।
गीत के माध्यम से ।
खैर यह तो हमार गांव के बगीचे की बात है।
जब मैं बगीचे से निकल कर कुछ आगे बढ़ती हूं ।
पास में ही मेरा विद्यालय जहां में पढ़ती थी ।
मुझे वह दिन याद आने लगा जब मैं अपने स्लेट को कैसे चमक का कर ले जाती थी हम सब बच्चों में अपने स्लेट को चमकाने की होड़ लगी रहती थी ।
स्लेट जो की एक प्रकार का लिखने का माध्यम होता था जिस पर हम लोग चाक से लिखते थे। उस समय पर हमें अपनी गलतियां मिटाना कितना आसान होता था ।
आज मुझे यह महसूस होता है अब तो बड़े होने पर अगर हम कोई गलती कर देते हैं ।
तो उसे मिटाना उतना आसान नहीं होता है ।
जितना बचपन में!
 हम कितनी गलतियां करते हैं? उसे मिटाना आसान होता है!
 इसीलिए शायद बचपन में स्लेट पेंसिल से शिक्षा दी जाती होगी।
 की बचपन की गलतियों को मिटाना आसान होता है 
परंतु बड़े हो जाने पर पेन पकड़ा दिया जाता है शायद इस विश्वास के साथ  की अब आपकी गलतियों को मिटाना उतना आसान न हो ।
जितना की बचपन में था ।
मैं अपने प्राथमिक पाठशाला को बहुत ध्यान से देखती हूं उसके आसपास घूमती हूं फिर मैं अपने गांव की तरफ चल पड़ती हूं रास्ते में कई बड़े बुजुर्ग मिलते हैं ।
जिन्हें मैं तो नहीं पहचानती परंतु मेरे प्रणाम करने के प्रति उत्तर में वह तुरंत ही मुझसे कहते पूनम हो ना पहचान रहे हैं ।मैं तो शायद सबको पहचानने की कोशिश कर रही थी ।
परंतु न जाने क्या होता है गांव के इन बड़े बुजुर्गों की नजरों में की यह अपनी पुरानी से पुरानी गांव की लड़कियों को भूल नहीं पाते हैं।
 मुझे बहुत अच्छा लगता है जब कोई मुझे मेरे नाम से पहचान जाता था।
इस तरह मैं गांव के खेत खलियान से होते हुए अपने गांव के घर तक पहुंचती हूं कुछ दिन तक मेरा वहां रहना होता है फिर मुझे वापस शहर आना पड़ता है। परंतु शहर आते समय इस बार मेरे साथ बहुत सी यादें चली आ रही हैं ।मुझे गांव कई वर्षों के बाद मेरा आना हुआ परंतु मैंने कभी सोचा नहीं कि जब मैं यहां से लौटुगी तो मेरे साथ एक यादों की बारात चली आएगी ।
मेरा बचपन ,वह मीठा आम का पेड़ ,वह नीम का पेड़ ,वह गली वह बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद, यह सब मेरे साथ ही शहर की तरफ मेरे साथ साथ ही आ गए ऐसा लगता है । मैं न जाने क्या?
 मन में सोच रही थी ।और अपने गांव को देखते देखते देखते एक यादों की बारात लेकर वापस अपने शहर को लौट रही थी ।
न जाने फिर कब मिलना हो इन सब से यह मैं सोच रही थी परंतु बहुत दिन के बाद अपने बचपन के गांव में जाना और उन सब जगह ।को देखना ।
मुझे बहुत अच्छा लग रहा था और मैं एक खूबसूरत यादों के साथ अपने शहर को लौट रही थी
लोगों से फिर एक मुलाकात का वादा करके मैं वापस अपने शहर जा रही थी

स्वरचित लेखिका पूनम मिश्रा

Comments & Reviews

Poonam  Mishra
Poonam Mishra बहुत सुंदर

4 months ago

LikeReply

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

किसी भी व्यक्ति को जिंदगी में खुशहाल रहना है तो अपनी नजरिया , विचार व्यव्हार को बदलना जरुरी है ! जैसे -धर्य , नजरिया ,सहनशीलता ,ईमानदारी read more >>
Join Us: