YOGESH kiniya 16 Mar 2024 आलेख राजनितिक वर्तमान की राजनीति पर आधारित 6751 0 Hindi :: हिंदी
दल बदल "दल बदल" पढ़ने में और सुनने में यह शब्द भले ही राजनीति की प्रयोगशाला का चिर परिचित आखर लगता होता हो , परन्तु अगर यही शब्द जन साधारण में रंग बदलते किसी व्यक्ति पर तंज के रूप में कस दिया जाए तो उस व्यक्ति को शर्मशार करने के लिए अपरिमित होगा। यद्यपि मेरे लेख का प्रतिपाद्य जन सामान्य की दल बदलू प्रवृति को उजागर करना ना होकर जन साधारण के कर्णधार जनप्रतिनिधीयो की स्वार्थी और सता लोलुप दल बदलू प्रवृति को उजागर करना है। देश के खून पसीने की संचित निधि से जब जनप्रतिनिधीयो को चुनने की चुनावी प्रक्रिया को चुनाव आयोग धरातल पर उतारता है तो उसका यह ध्येय रहता है की देश के मतदाता के हाथ में वो संवैधानिक ताकत दे जिसके बलबूते पर वे एक सुयोग्य व्यक्ति को चुनकर देश की विधान पालिकाओ में भेजें। धन्य है देश का संविधान जो हमे इतनी ताकत प्रदान करता है। परंतु जन सामान्य के आशीर्वाद से देश की विधान पालिकाओं में पहुंचा हुआ वह जनप्रतिनिधि अपने स्वार्थ के लिए कब दल बदल ले कुछ कहा नहीं जा सकता। जन सामान्य अपने जनप्रतिनिधि का चुनाव उसके सिद्धांतों उसके विचारों और उसकी पार्टी की विचारधारा को देखकर करता है। परंतु वह जनप्रतिनिधि अपनी सत्तालोलूप भूख को शांत करने के लिए सारे सिद्धांतों और विचारधारा को तिलांजलि देता हुआ और जन सामान्य की भावनाओं पर चोट करता हुआ दल बदल कर बैठता है। क्या देश के संविधान में ऐसा कोई कानून नहीं बना है जो इस दल बदल की प्रवृति पर रोक लगाए। जी हां संविधान ने 1985 में 52 वे संविधान संशोधन के तहत दल बदल विरोधी कानून बनाकर अपना दायित्व ज़रूर पूरा किया है । परंतु यह कानून कितना कारगर साबित हुआ है यह तो हम दिन प्रतिदिन देख ही रहे है। देश की राजनीति को विकास परक होना चाहिए ना कि स्वार्थ परक।
Senior teacher Swami Vivekanand government model school siwana, Barmer...