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नारी शक्ति वंदन-देश की आधी आबादी को लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में

virendra kumar dewangan 23 Sep 2023 आलेख राजनितिक Political 13733 0 Hindi :: हिंदी

नारी शक्ति वंदन
देश की आधी आबादी को लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में तैंतीस प्रतिशत आरक्षण देने के मकसद से नए संसद भवन में लाया गया नारी शक्ति वंदन अधिनियम देश के उत्थान के लिए जहां मील का पत्थर साबित होगा, वहीं नारियों में नवजीवन का संचार करेगा।

यह 128वां संवैधानिक संशोधन विधेयक कहलाएगा, इसीलिए इसे संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पास कराना जरूरी था। शुक्र है कि इस विधेयक को लोकसभा में 454-2 और राज्यसभा में 214-0 के अंतराल से पारित करवाया गया है, जो कि इतिहास रचनेवाला हो गया है। 

इसके उपरांत भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद देश के कम-से-कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से भी इसे पारित कराना होगा, तभी यह कानून का रूप ले सकेगा। 

इसके तत्काल लागू होने में एक पेंच यह भी कि नया कानून बनने के बाद इसे जनगणना व परिसीमन के बाद ही अमलीजामा पहनाया जाएगा। जबकि नया परिसीमन 2026 में प्रस्तावित है और जनगणना की तिथि अभी तय नहीं है।

वर्तमान में लोकसभा में 78 महिला सदस्य हैं, जो 15 प्रतिशत है। 2014 में तो सिर्फ 62 महिलाएं लोकसभा में प्रवेश कर सकी थीं। विधेयक के कानून बन जाने से जहां लोकसभा में मौजूदा सीटों के अनुसार 543 सीटों में-से 181 और राज्य विधानसभाओं में 4,123 सीटों में-से 1,374 महिलाएं कानून निर्मात्री संस्थाआंे में महत्वपूर्ण भूमिका का निवर्हन कर सकेंगी। जनगणना और परिसीमन हो जाने से यह संख्या लगभग दोगुनी से अधिक हो जाएगी।

इसी तरह एससी-एसटी की आरक्षित सीटों पर भी इन्हीं वर्गों की महिलाओं का विशेषाधिकार होगा। सभी सीटों पर महिला आरक्षण की अवधि 15 वर्ष होगी। उसके बाद संसद द्वारा गठित समिति इसकी समीक्षा करेगी।

हालांकि इसके पूर्व भी 12 सितंबर 1996 को राष्ट्रीय मोर्चा की देवगौड़ा सरकार ने यह विधेयक सबसे पहले लाया था, पर कई दलों के विरोध के चलते विधेयक लटक गया। इसके बाद वाजपेयी की सरकार ने भी इसे पारित कराने का प्रयास किया, पर संख्याबल के अभाव में विधेयक पारित न हो सका। वहीं, 9 मार्च 2010 को मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने इसे राज्यसभा में तो पारित करवा लिया, पर लोकसभा में सपा, जदयू व राजद के भारी विरोध के फलस्वरूप इसे पास न करवा सका। 

दरअसल, ये पाटियां यूपीए की सहयोगी थी और इन्होंने स्पष्ट तौर पर धमकी दे रखी थी कि यदि महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पारित करवाया जाता है, तो वे समर्थन की बैसाखी वापस लेने के लिए विवश हो जाएंगी।

27 वर्षों से लटके पड़े इस विधेयक को कोई दल ऐसा नहीं है, जो बदले परिवेश में महिलाओं के आरक्षण का विरोध करने की हिमाकत कर सके। इसीलिए, सभी दलों में इसका श्रेय लेने की होड़ मची हुई है। इसमें कांग्रेस सबसे आगे है, जो यह दावा कर रही है कि महिला आरक्षण का विचार उसका है। जबकि सच्चाई कुछ और है।

कड़वी सच्चाई यह कि यही पार्टियां महिलाओं को टिकट देने में हमेशा आनाकानी करती रही हैं, इसीलिए महिलाओं का प्रतिनिधित्व लोकसभा व राज्य विधानसभाओं में एकदम कम हैं। यह भी एक सच्चाई है कि महिलाओं को टिकट देने के मामले में तृणमूल कांग्रेस सबसे आगे रही है और बसपा सबसे पीछे। 

लेकिन, देर आए दुरुस्त आए की तरह अब सभी पार्टियां हवा के बदलते रुख को परख कर इसका समर्थन कर रही हैं। करें भी क्यों नहीं, यह 40 करोड़ महिला मतदाताओं का सवाल है, जिसे कोई खोना नहीं चाहता और सारा श्रेय मोदी सरकार को देना भी नहीं चाहता।

इसीलिए, विपक्षी पार्टियों ने इसमें एक पेंच लगाने का प्रयास किया है कि इसमें ओबीसी महिलाओं का भी आरक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिए और इसे तुरंत लागू किया जाना चाहिए। सपा की एक नेत्री ने तो ओबीसी के साथ मुस्लिम महिलाओं के आरक्षण का विचार तक रख डाला, जबकि संविधान धर्म के हिसाब से आरक्षण का समर्थन नहीं करता। लेकिन, सोचनीय पहलू यह कि उन्होंने महिला आरक्षण बिल तब क्यों नहीं पारित करवाया और तुरंत लागू क्यों नहीं किया?

एक जानकारी के मुताबिक, किसी राज्य की विधानसभाओं में 15 फीसद महिलाएं प्रतिनिधित्व नहीं करती। छग में 14.44 फीसद महिलाएं हैं, जो देश के विधानसभाओं में सर्वाधिक हैं। वहीं पं. बंगाल मंे 13.70 फीसद; झारखंड मे 12.35 फीसद; राजस्थान में 11.66 फीसद; उप्र, दिल्ली व उत्तराखंड में 11.4 फीसद और कर्नाटक में 3.4 फीसद महिलाएं प्रतिनिधित्व कर रही हैं, जो तमाम पाटियों की पोल खोलने के लिए काफी हैं।

हालांकि यह भी सही है कि इन्हीं पाटियों की सरकारों ने राज्य विधानसभाओं से पारित अपने कानून में महिलाओं को पंचायतों में 74वें संवैधानिक संशोधन की आढ़ में यानी ग्रामीण निकायों में व 73वंे संवैधानिक संशोधन की आढ़ में नगरी निकायों में 50 प्रतिशत तक आरक्षण दे रखा है। 

लेकिन, क्या जिन पार्टियों ने यह आरक्षण दिया, उनने कभी सुध लेने की कोशिश किया है कि जिन महिलाओं को आरक्षण का लाभ दिया गया है, वे वास्तव में उस अधिकार का उपयोग करीं हैं या उनके नाम पर उनके पतियों व बेटों ने मौज उड़ाया है।
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