DINESH KUMAR KEER 28 May 2023 कहानियाँ अन्य 7207 0 Hindi :: हिंदी
माँ का ख़त मोनू एक बस में सफ़र कर रहा था तो जब वह बस से उतरकर मोनू ने अपनी जेब में हाथ डाला ही था कि चौंक गया, उसकी जेब कट चुकी थी । उस समय मोनू के पैरों तले से जमीं किसकी गयी व सीने पर मानों पहाड़ गिरा व बहुत घबरा गया... जेब में था भी क्या ? कुल 350 रुपए और एक ख़त जो उसने अपनी माँ को लिखा था कि कुछ दिनों पहले ही उसकी नौकरी छूट गई है, अभी पैसे नहीं भेज सकता, फ़िलहाल वो नए काम की खोज कर रहा है । दस बारह दिनों से वह ख़त उसकी जेब में पड़ा था लेकिन गाँव में माँ को पोस्ट करने की उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी । आज उसके 350 रुपए जा चुके थे । यूँ 350 रुपए कोई बड़ी रकम नहीं होती, लेकिन जिसकी नौकरी छूट चुकी हो उसके लिए 350 रुपए भी 3500 सौ से कम नहीं होते ! कुछ दिन गुजरे । माँ का खत मिला । पढ़ने से पहले ही मोनू सहम गया । जरूर पैसे भेजने को लिखा होगा । वो सोच में पड़ गया कि अब वो क्या करे, ख़त पढ़े या न पढ़े, उसके बाद माँ को क्या जबाब भेजे ? कुछ देर बाद गहन सोच विचार कर बड़ी हिम्मत से उसने ख़त खोला । माँ ने लिखा था - "बेटा, तेरा एक हज़ार रुपए का भेजा हुआ मनीआर्डर मिल गया है। तू कितना अच्छा है रे ! पैसे भेजने में कभी भी लापरवाही नहीं बरतता... सदा खुश रह ।" मोनू इसी उलझन में लग गया कि आखिर माँ को मनीआर्डर किसने भेजा होगा, उसका दिमाग बिलकुल सन्न था, लेकिन उसने मन ही मन पहले भगवान औऱ उसके बाद उस इंसान को धन्यवाद कहा जिसने मनीऑर्डर भेजा था ? कुछ दिन बाद, एक और पत्र मिला । चंद लाइनें लिखी थी, आड़ी - तिरछी । बड़ी मुश्किल से वो उस खत को पढ़ पाया... लिखा था... "भाई, 350 रुपए तुम्हारे और 650 रुपए अपनी ओर से मिलाकर मैंने तुम्हारी माँ को मनीआर्डर भेज दिया है । फ़िक्र न करना, माँ तो सबकी एक जैसी ही होती है न ! वह क्यों भूखी रहे ? तुम्हारा - जेबकतरा भाई...!" मोनू की आँखें नम हो गई ।