संदीप कुमार सिंह 01 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 10021 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_दोहा छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" मुझ पर यह अहसान कर, मुझ से कर ले प्यार। और करो अधिकार भी, बनकर यूँ दिलदार।। मन से मन को मेल कर,सफर करूं हर राह। प्यार और बढ़ता चले,जो हो अटल अथाह।। भव्य सितारा बन यहां,रहूं चमकते नित्य। लोगों में नव चाह हो,जैसे हूं आदित्य।। जीवन के हर मोड़ पर,डिगे नहीं विश्वास। और अडिग विश्वास से,पूर्ण करूं हर आस।। धीरे धीरे लख जगत,देंगे सभी मिसाल। बेमिसाल पहचान से,लोगों में भूचाल।। मेरी खुशबू में सभी,जन_जन होंगे तृप्त। आएंगे मिलने सभी,मुझ में हो संलिप्त।। जहां रहूं हम है वहां,अनुपम भव्य बहार। शांत रहे यूँ हर बला,साथ रहे केदार।। दिव्य ज्योति फैले सदा,मेरे दिव्य विचार। हामी भरती है हवा,ऐसे हम दिलदार।। लोगों को कहते सुना,मिल लो उनसे यार। करते सबका ही भला,जिनका अरु किरदार।। आया ही उपहार ले,करना है कल्याण। चलता सदा विवेक से,जिसका बहुत प्रमाण।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....