Vipin Bansal 04 Jul 2023 कविताएँ समाजिक 6049 0 Hindi :: हिंदी
कविता = ( दिल्ली ) अंधी मूकबधिर अब हो गई दिल्ली ! दिल्ली का यह क्या हाल हो गया !! असहाय, बेबस पिता लाचार हो गया ! पिता के ही सामने बेटा लाश हो गया !! दो ही दिन बाद थी उसकी शादी ! खुशियों का वो घर श्मशान हो गया !! सरेआम चाकुओं से गोद डाला ! दिल्ली शहर चलती फिरती लाश हो गया !! यही है गर दिल वालों की दिल्ली ! फिर हिजड़ा नाम क्यों बदनाम हो गया !! अंधी मूकबधिर अब हो गई दिल्ली ! दिल्ली का यह क्या हाल हो गया !! वहशियों का दिल्ली में राज हो गया ! कभी श्रदा कभी साक्षी ये मंज़र आम हो गया !! निर्भया के बाद भी न बदले हालात ! दिल्ली में पैदा रक्तबीज हो गया !! इन्हीं खबरों से यहाँ बिकता है अख़बार ! दिल्ली में इसका अब बाज़ार हो गया !! अख़बारों, खबरों के चैनलों में लगे चार चाँद ! यह अख़बारों, चैनलों का श्रृंगार हो गया !! दिल वालों की है दिल्ली ! अब जुमलों में शुमार हो गया !! अंधी मूकबधिर अब हो गई दिल्ली ! दिल्ली का यह क्या हाल हो गया !! दिल से ख़त्म कानून का ख़ौफ़ हो गया ! क्या फांसी का फंदा इतना कमजोर हो गया !! निर्भया इंसाफ से भी न सिखा सबक़ ! शायद यह इंसाफ़ गुजरे पल की बात हो गया !! अब चौराहे पर ही टांग दो इनको ! सब्र का बाँध अब कमज़ोर हो गया !! यही है भारत की राजधानी दिल्ली ! दिल्ली का चेहरा बेनक़ाब हो गया !! पेरिस बनाने चले थे दिल्ली ! यह तो कातिलों का शहर हो गया !! अंधी मूकबधिर अब हो गई दिल्ली ! दिल्ली का यह क्या हाल हो गया !! विपिन बंसल