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मेहनतकश-देर आए दुरुस्त आए

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ समाजिक मेहनत, मेहनतकश, मेहनती, बिजनेसमैन, बिजनेस, भागदौड़, खरीद बेच, समलता, सफल, धोखा, लड़ाई, हार मानना, माफी मांगना 6611 0 Hindi :: हिंदी

रघु एक बहुत ही मेहनती मजदूर था. 5 साल की उम्र में माँ गुजर गयी और 10 साल की उम्र में बाप अनाथ कर गया. उसके बाद रघु का कोई सहारा ना था. उसे 2 वक़्त की रोटी कौन खिलाएगा ये सोच कर वो घर से निकला और रास्ते पर भटकने लगा. चिलचिलाती दोपहरी में ऊपर से धूप से जल रहा था और नीचे पेट में भूख की आग जला रही थी. सोचा किसी से कुछ मांग कर खा लूँ. एक आदमी के पास गया बोला मुझे भूख लगी है कुछ खाने को दे दो तो उस आदमी ने उसे फटकारते हुए धक्के देकर भगा दिया. बाद में उसे गाली देते हुए बोला कि भीख क्यों मांगता है जा कर मेहनत करके नहीं खा सकता. 10 साल का बच्चा कैसे मेहनत कर सकता था. उसके दिमाग में यह बात आई कि अगर मैं मेहनत करूं तो मुझे कोई भी कुछ नहीं बोलेगा मैं अपने से अपने लिए कमा कर खा सकता हूं. यह सोच कर वह आगे बढ़ा और देख रहा था कि उसके करने लायक कोई काम है या नहीं. जिसके पास भी जा कर कहता है मुझे काम करना है पैसों की जरूरत है खाने के लिए तो लोग उसे देखते कि 10 साल का बच्चा है क्या काम करेगा इसलिए उसे भगा देते थे. चलते चलते वह गांव से बाहर निकल गया और 1 खेत में पहुंचा. उस खेत में एक किसान मजदूरी कर रहा था और थक कर बैठा हुआ था. रघु उस आदमी के पास गया और जाकर बोला कि क्या मैं जब तक आप बैठे हुए हैं तब तक आप के खेत में काम करूं.  उस बूढ़े किसान ने सोचा कि है तो यह बच्चा लेकिन मेरी मदद करने के लिए आया है तो जरूर कोई बात होगी. किसान ने कहा ठीक है तुम वह फावड़ा उठाओ और मिट्टी को खोदो. रघु ने ऐसा ही किया और फावड़ा उठाकर जमीन में खोदने का काम चालू कर दिया. था तो बच्चा ही कुछ देर में थक कर बैठ गया लेकिन हिम्मत नहीं हारी और कुछ देर बाद फिर से उठकर काम में लग गया. उसके हिम्मत और उसके काम करने में लगन देखकर किसान बहुत खुश हुआ. दोनों मिलकर शाम तक काम करते रहे और शाम के बाद किसान ने रघु से पूछा कि बेटा कितने रुपए लोगे. रघु ने बोला कि मुझे बहुत भूख लगी थी तो मैंने आपको काम करते हुए देखा और आपके पास चला आया. सोचा कि आप की मदद कर दूंगा तो मुझे खाने के लिए दो रोटी मिल जाएगी. बूढे़ ने जब उसकी यह बात सुनी तो पूछा कि तुम्हारे माता-पिता कहां हैं?  रघु ने बताया कि उन दोनों का देहांत हो गया और मैं अकेला हूँ.  यह जानकर किसान को बहुत दुख हुआ और किसान ने पूछा तुम रहते कहां हो? रघु ने बताया मेरा घर तो है लेकिन वहां पर मैं अकेला हूँ. किसान को रघु पर दया आ गई तो किसान ने उसे कुछ रुपए दिए और बोला कि कल से रोज मेरे पास आ जाना हम दोनों मिलकर खेती का काम करेंगे. रघु ने किसान की बात मान ली और रोज उसके पास आने लगा और मेहनत करने लगा. कुछ समय बीता और खेत में गेहूं की फसल लहलहाने लगी और रघु की मेहनत नजर आने लगी. आगे का काम था खेत पर नजर रखना, फसल की कटाई करना और अनाज को बाजार में बेचना. यह सारा काम तो किसान का था इसमें रघु  की कोई जरूरत नहीं थी. अब किसान के पास से रघु का काम खत्म हो चुका था. रघु अब थोड़ा समझदार भी हो चुका था उसने सोचा कि कोई और काम करके अपना गुजारा करना होगा. गांव में घूमते हुए उसे दिखाई दिया कि एक घर बन रहा है. उस घर में मजदूर की कमी थी रघु ने बोला कि मैं मजदूरी करूंगा.  उसे देख कर घर के मालिक ने बोला तू तो बच्चा है तू क्या कर पाएगा. रघु ने बोला मेरी उमर नहीं मेरा हौसला और मेरा काम देखिए. यह कहते हुए रघु जहां काम हो रहा था वहां ले जाने लगा.  घर के मालिक ने सोचा कि जब यह करना चाहता है तो करने देता हूं मेरे पास भी मजदूरों की कमी है मेरा काम निकल जाएगा. दिन भर उसके मेहनत को मकान के मालिक ने देखा और वह बहुत खुश हुआ. शाम को उसने रघु को अपने पास बुलाया और बोला बेटा तू बहुत मेहनती है कल से तू रोज मेरे पास आना और मेरा घर बनने तक तू मेरे साथ काम कर. रघु ने हां कर दी और रोज वहां पर काम करने लगा इससे उसे कुछ रुपये भी मिल रहे थे और मेहनत करते हुए उसका शरीर भी मजबूत होता जा रहा था. इसी तरह से घरों में काम करते करते और मेहनत करते करते उसने 3 साल गुजारे. अब उसके मन में यह आने लगा कि ऐसे मजदूरी करते हुए मैं कब तक अपना गुजारा कर लूंगा. फिर उसने बाज़ार की ओर अपना ध्यान घुमाया. देखा कि फल, सब्जी, घरेलू सामान, राशन और ना जाने कितनी तरह की दुकानें उसे बाज़ार में दिखीं. उसने देखा कि राशन की दुकान पर बहुत लोग ढेर सारा सामान लेते हैं और खुद लेकर नहीं जाते बल्कि दुकानदार से कहते हैं कि घर भिजवा देना. रघु ने सोचा कि क्यों न मैं इन सामानों को उनके घरों में पहुँचाने का काम अपने हाथ में ले लूँ? उसने दुकानदार से बात किया तो दुकानदार मान गया और रघु को इस काम के लिए एक साइकिल भी दे दी. अब रघु राशन और बाकी समान लोगों के घर पहुंचाने लगा. इसमें उसे मेहनत कम लगती थी. लेकिन उसकी उम्र के हिसाब से यह काम उसके लिए बेहतर था. ये काम करते हुए उसने कुछ महीने गुजारे और इस बात को गांठ बांधता रहा कि लोगों को किस चीज की ज्यादा जरूरत होती है. रघु के दिमाग में कुछ तो चल रहा था. वो अपनी कमाई में से कुछ पैसे बचा लेता था. भविष्य के लिए उसे कुछ तो करना ही था. ऐसे मेहनत मजदूरी करते हुए वो कब तक गुजारा करता. पैसे बचाकर उसने खुद की एक साइकिल ले ली और घरों में इस्तेमाल होने वाली जरूरी चीजों में से कुछ थोक दाम पर खरीद लिया और उन घरों की ओर सामान का नाम चिल्लाते हुए घूमने लगा जहां वो अक्सर दुकान से सामान पहुंचाने जाता था. उसे वो लोग पहचानते थे. उन घर की औरतों ने उसे देखा तो अपने जरूरत का सामान उससे खरीद लिया और पूछा कि आज तुम यहाँ चिल्लाकर समान क्यूँ बेंच रहे हो तो रघु ने बताया कि उसने खुद की चलती - फिरती दुकान खोली है. औरतों ने सोचा कि बच्चा मेहनत कर रहा है तो क्यूँ ना हम इसी से अपने सामान लिया करें. हमारा काम भी हो जाएगा और ये लड़का भी चार पैसे कमा लेगा. उन औरतों ने रघु को अगले दिन जो सामान मंगवाना था वो लिखवा दिया और बोलीं की ये सब हमें कल चाहिए समय पर दे जाना. अब हम तुमसे ही ये सारा सामान लेंगे. इस तरह से रघु की छोटी सी दुकान चल पड़ी. धीरे - धीरे रघु ने अपने व्यापार का विस्तार किया और कुछ समय बाद साइकिल से ठेले पर आ गया. अब उसकी दुकान में पहले से ही वो सब रहता था जिसकी बिक्री ज्यादा होती थी. समय बीतता गया और रघु ने कड़ी मेहनत कर के पैसे कमाकर बाज़ार में खुद की एक दुकान खोल ली और कुछ लड़कों को सामान पहुँचाने के लिए रख लिया. अब उसकी व्यापार एक जगह बैठ कर चलने लगा तो उसने सोचा अब थोड़ी पढ़ाई भी कर लूँ. वर्ना इतने बड़े व्यापार को कैसे संभालुँगा? तो उसने 2 लोगों से बात की. एक वो जो उसके व्यापार को संभाले और दूसरा एक गुरु जो उसे पढ़ाए. अब उसने व्यापार के साथ - साथ पढ़ाई में भी मन लगाया. हिसाब - किताब से लेकर बाज़ार की जानकारी और बात करने का तरीका रघु ने सब अपने गुरु से सीख लिया.
अब रघु की उम्र 16 हो चुकी थी और इस नाबालिग उम्र में उसने एक व्यापार को शुरू कर के काफी आगे बढ़ा दिया था. अब समय था व्यापार को और व्यापक करने का. दुकान से रघु को जो आमदनी होती थी उससे रघु ने एक होटल खोला और मिठाई से लेकर जलपान की सभी चीजें बनवाना और खिलाना शुरू किया. उसने होटल के लिए बाज़ार में चौराहे के पास जगह चुनी क्यूंकि वहाँ से लोगों का आना जाना बहुत था. लोग उसके होटल की ओर खिंचे चले आते थे और खाए-पीए बिना नहीं जाते थे. रघु होटल में हर चीज को अपनी निगरानी में बनवाता था ताकि किसी भी चीज में कोई कमी ना निकले. उसका होटल भी अच्छी तरह से चल पड़ा और अब रघु की आमदनी दुगनी हो गयी. उसने पैसे बचाकर रखने के बजाय उसे बाज़ार में लगाना बेहतर समझा. रघु ने कुछ रिक्शा खरीदा और बेरोजगार लोगों को बुलाकर उन्हे रिक्शा दे दिया और बोला कि इन्हे चलाओ और अपनी रोज की आमदनी में से मुझे एक हिस्सा दे देना बाकी तुम्हारा. उन लोगों को रोजगार भी मिल गया और रघु के पैसे आमदनी का ज़रिया भी बन गए. 
रघु का तजुर्बा बढ़ता जा रहा था और ज़िन्दगी में आगे बढ़ने की चाह उसे आसमान छूने को कहने लगी. रघु ये बात समझ चुका था कि अगर अमीर बनना है तो खुद मेहनत करने के बजाय अपने नीचे काम करने वाला रखना होगा. जिस तरह से उसकी दुकान को चलाने के लिए उसने आदमी रखे जो दुकान भी संभाल रहे थे और सामान भी घरों तक पहुंचा रहे थे. दूसरी ओर होटल में खाने की चीजें बनाने वाले और तीसरी ओर रिक्शा चलाने वाले सभी रघु के लिए काम कर रहे थे और रघु को काम किए बिना आमदनी हो रही थी उसी तरह रघु ने सोचा कि और भी व्यापार खोजना होगा जिसमे मैं लोगों को रोजगार भी दे सकूँ और खुद भी कमा सकूं. रघु ने कई शहरों का चक्कर लगाया और बाज़ारों की टोह ली. उसने देखा कि बाज़ार में सामान के साथ - साथ मेहनत की भी मांग है. जैसे कि किसी को अपना सामान ढोने के लिए मजदूर चाहिए तो किसी को अपना घर पुताई करवाना है, किसी को अपने खेत में खेती करवाने के लिए मजदूर चाहिए तो किसी को अपने घर की रखवाली के लिए चौकीदार चाहिए. इस तरह रघु ने एक लंबी सी सूची बनायी और सूची के लिए बेरोजगारों को खोजा जो सूची को पूरा कर सकते थे. उन्हें लेकर पहले रघु ने उन्हे प्रशिक्षण दिया फिर उन्हे काम पर लगा दिया. हर काम से जो पैसे मिलते थे उनमे से उस मजदूर की मजदूरी देकर भी रघु को काफी पैसे बचने लगे. जिसे जैसे आदमी की जरूरत रहती रघु उसे वैसा आदमी मुहैया करा देता और इस तरह से रघु का एक और व्यापार चल पड़ा. 
रघु की उम्र अब 22 साल हो चुकी थी. कई व्यापार की शुरूआत कर उन्हे ऊंचाई पर पहुँचाया और खूब पैसे कमाकर एक दौलत - शोहरत वाला आदमी बन गया. व्यापार को बढ़ाता गया लेकिन धीरे - धीरे मन की शांति कहीं खोने लगी. उसे ऐसा लगता कि कहीं कुछ कमी है, कुछ खो गया है. फिर माँ - बाप की यादों में खो जाता और सोचता कि उसके माँ - बाप आज उसके साथ होते तो उसकी कामयाबी देख कर कितने खुश होते. वो उनकी किस तरह से सेवा करता और कहाँ घुमाने ले जाता, क्या - क्या खिलाता वगैरह - वगैरह बहुत सी बातें सोचता और अपने मन की अशांति को कुछ देर के लिए भूल जाता.
सब कुछ अच्छा चल रहा था और एक दिन रघु को व्यापार के सिलसिले में किसी व्यापारी से मिलने जाना था तो वो कार में वहां के लिए निकला. थोड़ी देर हो रही थी तो ड्राइवर को गाड़ी तेज़ चलाने को कहा. ड्राइवर ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी. अभी कुछ दूर ही निकले थे कि एक मोड़ पर अचानक से एक छोटी बच्ची गाड़ी के सामने आ गयी और ड्राइवर ने गाड़ी को संभालते हुए ब्रेक लगायी और गाड़ी ठीक बच्ची के पास जाकर चीं की आवाज़ कर के रुक गयी. ड्राइवर डर गया और रघु घबराते हुए बच्ची को देखने के लिए गाड़ी से उतरा. रघु ने देखा कि बच्ची ठीक है और बच्ची को एक 19-20 साल की लड़की ने अपनी बाहों में इस तरह पकड़ा हुआ है जैसे वो उसे बचाने के लिए गाड़ी के सामने कूद पड़ी हो. रघु ने घबराहट में पूछा - तुमलोग ठीक तो हो? लड़की ने अपनी आंखें खोलीं और रघु को अपने सामने देख कर गुस्से में डांट लगाते हुए बोली - तुम बड़े लोग हम गरीबों को कीड़े-मकोड़े समझते हो. देख कर गाड़ी नहीं चलाते. अगर इस बच्ची को आज कुछ हो जाता तो इसके माँ - बाप किसके सहारे जीते? वो लड़की बोले जा रही थी लेकिन रघु को कुछ सुनायी नहीं दे रहा था. रघु तो उसकी खूबसूरती और उसकी आवाज़ में खोया हुआ था. लड़की डांट कर चली गयी तब ड्राइवर ने रघु को पूछा- सर चलें? तब रघु उस लड़की के खयालों से बाहर आया तो देखता है कि लड़की कब की जा चुकी है. रघु उस हादसे को भुला कर अपनी मंज़िल की ओर चल पड़ा. व्यापारी से मुलाकात हुई और व्यापार में साझेदारी भी कर लिया. कुछ दिनों बाद रघु उसी गाँव से गुज़र रहा था जहां हादसा होते - होते रह गया था वहाँ भीड़ लगी हुई थी. रघु को लगा कि कहीं कोई हादसा तो नहीं हो गया. रघु ने गाड़ी से बाहर आकर देखा तो पता चला कि वहां पानी भरने के लिए लाइन लगी हुई थी और एक बूढ़ी औरत जब पानी भरने गयी तो सब उसे पीछे भेज रहे थे और इस वजह से वो पानी नहीं भरने पायी और पानी आना बंद भी हो गया. उस औरत को पीछे भेजने की बात पर वही लड़की सारी औरतों पर गुस्सा हो रही थी और अंत में बुढ़िया पर भी गुस्सा होने लगी कि जब आप लाइन में लगी हुई थीं तो सब के कहने पर पीछे क्यूँ गयीं? ये सारा किस्सा समझकर रघु उनके पास गया और बोला कि अभी आपके घर पानी आ जाएगा आप चिंता मत कीजिए. रघु वहां से चला गया और जल विभाग में संपर्क करके एक पीने के पानी का टैंकर उस गाँव में भिजवा दिया. सबको भरपूर पानी मिल गया और वो लड़की इस सोच में डूब गयी कि ये आदमी था कौन जिसने पानी का इंतज़ाम इतनी जल्दी कर दिया वो भी उनके लिए जिनसे उसका कोई रिश्ता - नाता नहीं. शायद मैंने ही इसे गलत समझ लिया होगा. ये तो दिल का बहुत नेक मालूम होता है. ये सब सोचते हुए वो लड़की अपने घर अपनी बूढ़ी बीमार माँ के पास चली गयी. उसकी माँ बिस्तर पर पड़े हुए खाँस रही थी और पानी खोज रही थी. लड़की ने जब माँ को खांसते हुए देखा तो झट से उसे पानी पिलाया और दवा खाने को बोली. माँ ने कहा - मंजरी तू कब तक मेरे लिए परेशान रहेगी? मंजरी बोली- जब तक मैं ज़िंदा हूँ तुझे कुछ नहीं होने दूंगी माँ. मंजरी ने माँ को दवा दी और घर के काम में लग गयी. मंजरी गाँव की आंगनबाड़ी में बच्चों को पढ़ाती थी. उसी से उसके घर का खर्चा निकलता था. जो बच्ची रघु के गाड़ी के सामने आ गयी थी वो भी मंजरी के पास पढ़ने आती थी. मंजरी ने घर का काम किया और आंगनबाड़ी की ओर चल दी. उधर रघु अपने काम से लौट रहा था और गाँव में घुसते ही उसे मंजरी का खयाल आया. रघु को वो बूढ़ी औरत दिखायी दी जो पानी की लाइन मे खड़ी थी. रघु ने गाड़ी रुकवाई और उससे बोला- अम्मा वो लड़की कौन थी जो आपके लिए सुबह लड़ रही थी? बूढ़ी औरत ने मंजरी के बारे में सब कुछ रघु को बताया. रघु मंजरी के बारे में जान कर उससे मिलने को बहुत उत्सुक हुआ. रघु ने सोचा कि वो सीधा मंजरी के पास जाएगा तो मंजरी उसे नज़रअंदाज़ कर देगी. रघु ने युक्ति बनायी कि कैसे मै मंजरी को मजबूर कर दूँ कि वो खुद मुझसे मिलने को उत्सुक हो जाए. 
रघु ने बचपन में बहुत गरीबी देखी थी क्यूंकि वो कम उम्र में ही अनाथ हो गया था. इसलिए वो गरीब लोगों की तकलीफ को अच्छी तरह समझ सकता था. आज भले ही रघु एक अमीर आदमी बन चुका था फिर भी उस गरीबी के दौर को भूला नहीं था. उसने सोचा कि मै मंजरी की नज़र में आए बिना उसके पूरे गाँव को बदल दूँगा. अगले दिन से ही रघु काम पर लग गया. सबसे पहले पानी की समस्या का हल निकाला. फिर सड़क बनायी उसके बाद एक अस्पताल खुलवा दिया जो सबका इलाज मुफ्त में करे और उसका खर्च रघु खुद उठाता था. मंजरी ने ये सब बदलाव तो देखा लेकिन वो इस बात से अनजान थी कि ये सब रघु उसके लिए कर रहा है. 2 महीने बीत गए. मंजरी जब आंगनबाड़ी से घर लौटी तो उसकी माँ घर पर नहीं थी. उसने पड़ोस में पूछा तो पता चला कि कुछ लोग गाड़ी से आए थे और उसकी माँ को ले गए. कौन थे कहाँ ले गए किसी को कोई खबर नहीं. मंजरी डर गयी. उसे लगा कि उसकी माँ को किसी ने अगवा कर लिया है. वो बाहर निकल कर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने जा ही रही थी कि उसके घर के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी. उस गाड़ी में से कोई नौजवान उसकी माँ को सहारा देकर उतार रहा था. वो रघु था. रघु को जब पता चला कि मंजरी की माँ की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है तो वो उन्हे अस्पताल ले गया और उनकी जाँच एक बड़े डॉक्टर से करवायी. डॉक्टर ने बताया कि खाना ठीक से ना खाने की वजह से उनका शरीर काफी कमजोर हो गया था जिसकी वजह से उन्हे खांसी भी होने लगी थी और दवा भी असर नहीं कर रही थी. ग्लूकोज़ की 3 बोतलें चढ़ाने के बाद डॉक्टर ने उन्हे ताकत और खांसी के लिए दवा दी. कुछ दिन ढंग से खाना और दवा खाने को कहा. अब मंजरी की माँ काफी हद तक ठीक हो चुकी थी. यह देख कर मंजरी बहुत खुश हुई लेकिन ये नहीं समझ पा रही थी कि रघु उसकी इतनी मदद क्यूँ कर रहा है? मंजरी ने जब उससे पूछा तो रघु ने कह दिया कि वो मंजरी को बहुत पसंद करता है. मंजरी भी मन ही मन रघु को बहुत पसंद करती थी लेकिन कहने से डरती थी क्यूंकि रघु बहुत बड़ा आदमी था. जब रघु ने उसे अपने दिल की बात बतायी तो वो भी खुद को रोक ना पायी और उसने भी रघु को अपने दिल की बात कह डाली.
रघु और मंजरी में प्यार की शुरुआत हो चुकी थी. दोनों अब एक दूसरे के साथ काफी वक़्त बिताने लगे थे. कभी कहीं दूर घूमने निकल जाते तो कभी सिनेमा देखने जाते. मंजरी को अनाथ बच्चों से बहुत लगाव था. वो रघु को एक अनाथालय ले गयी जहां वो अक्सर जाया करती थी. रघु जब वहां पहुंचा तो अनाथालय की हालत देख कर उसका मन भर आया. अभी मंजरी को ये बात पता नहीं थी कि रघु भी अनाथ है. मंजरी ने कहा कि काश वो उस अनाथालय के बच्चों के लिए कुछ कर पाती. रघु ने इस बात को अपने दिमाग में बैठा लिया और जब वो दोनों वहां से गए तो रघु ने अनाथालय के बच्चों के लिए पढ़ाई - लिखाई का इंतज़ाम करवा दिया. कुछ दिनों के बाद जब मंजरी रघु के साथ वहाँ वापस गयी तो बच्चों को पढ़ता देख बहुत खुश हुई और रघु को खुशी से गले लगा कर शुक्रिया किया. 
एक ओर रघु और मंजरी का प्रेम - प्रसंग चल रहा था वहीं दूसरी ओर रघु के व्यापार पर उसी के मैनेजर ने घात लगाया हुआ था. उसका नाम था किशन. किशन रघु का मैनेजर था लेकिन उसका पूरा व्यापार हथिया कर उसे कंगाल कर देना चाहता था. रघु को इस बात का अभी तक कोई अंदाज़ा नहीं था. उसने कभी नहीं सोचा था कि उसका भरोसेमंद किशन उसके साथ ऐसा धोखा करने को सोच रहा होगा. किशन ने युक्ति बनायी कि किस तरह से रघु का सारा व्यापार अपने हाथ में ले लूँ. किशन को पता था कि मंजरी के अलावा रघु का कोई नहीं है. इसी बात का फायदा उठाते हुए किशन ने मंजरी को अगवा कर लिया और रघु को फोन कर के सुनसान इलाके में अकेला बुलाया. रघु जब वहां पहुंचा तो किशन ने उसके सामने एक शर्त रखी कि मंजरी के बदले रघु को अपना सारा व्यापार और जायदाद किशन के नाम करना होगा और कभी भी उसके खिलाफ कोई कदम ना उठाए ऐसी कसम खानी होगी. रघु मंजरी को बहुत चाहता था इसलिए उसने किशन की शर्त मान ली और किशन के सारे कागजों पर हस्ताक्षर कर दिए और मंजरी को अपने साथ ले गया. अब रघु बिल्कुल बेसहारा था. उसके पास ना रहने के लिए घर था और ना खाने के लिए रोटी. मंजरी उसे अपने घर ले गयी. मंजरी की आंगनबाड़ी की आमदनी से रघु और मंजरी की माँ 2 वक़्त की रोटी खा रहे थे. रघु अपना हौसला हार चुका था. तनाव के कारण वो बिल्कुल कमजोर हो चुका था. उसे ना भूख लगती थी ना प्यास. मंजरी ये सब देख कर उसे बहुत समझाती लेकिन रघु सदमे से बाहर नहीं आ पा रहा था. जब मंजरी से कुछ ना हो सका तो एक दिन वो रघु के पास बैठी और बोली- मुझे तुम्हारे बारे में कुछ पता नहीं है. तुम्हारा नाम रघु है और तुम कल तक बहुत बड़े आदमी थे. मुझे तुम्हारे बचपन के बारे में बताओ. तुमने मुझे कभी अपने माता- पिता के बारे में नहीं बताया. मुझे आज सब कुछ जानना है तो शुरू से शुरुआत करो. रघु बोला - ठीक है सुनो...
रघु ने अपनी पूरी ज़िन्दगी की दास्तान मंजरी को कह सुनाया. मंजरी ने जब रघु की कहानी सुनी तो जोश में खड़ी हो गई. बोली - एक 10 साल का अनाथ बेसहारा लड़का अपने जज़्बे और कड़ी मेहनत से इतना बड़ा आदमी बन सकता है तो क्या बड़ा होकर उसका जज़्बा कभी ख़त्म हो सकता है? तुमने बचपन में इतना बड़ा व्यापार खड़ा किया जब तुम्हें बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी कि व्यापार कैसे करते हैं तो अब तो तुम्हें सारी जानकारी है. क्या अब तुम्हें उतना वक़्त लग सकता है? रघु ने मंजरी की बात पर गौर किया. मंजरी ने फिर बोला - अगर किशन ने तुमसे कहा है कि तुम उसके रास्ते में कभी नहीं आओगे तो मत आओ. बल्कि उससे भी ज्यादा मेहनत करके और बड़ा व्यापार खड़ा करो, किशन खुद ही तुमसे पीछे हो जाएगा. पहले तुम अकेले थे अब तो मै तुम्हारे साथ हूँ. मंजरी की इन बातों ने रघु के दिल पर गहरा असर किया. रघु को जोश आया और रघु खड़ा हो गया. उसने फिर से पहले जैसी मेहनत की और मंजरी हर कदम पर उसके साथ थी. केवल 2 साल में रघु ने पहले से बड़ा व्यापार शुरू कर दिया. अब तो वो कई तरह की चीजों का उत्पादन भी करने लगा था और उनका आयात - निर्यात देश - विदेशों में करने लगा. रघु और मंजरी ने कसम खायी थी कि जब तक उनका व्यापार किशन से बहुत आगे नहीं निकल जाता तब तक वो शादी नहीं करेंगे. आज रघु और मंजरी की शादी थी. मंजरी ने कहा कि किशन को भी जरूर बुलाओ. उसे भी दिखना चाहिए कि कोई इंसान किसी के धन - दौलत को तो छीन सकता है लेकिन हुनर और हौसले को नहीं. रघु ने शादी में किशन को बुलाया. किशन का व्यापार ठप हो चुका था क्यूंकि वो केवल रघु का व्यापार उससे छीन सका था व्यापार चलाने का हुनर नहीं जो रघु में जन्मजात था. किशन समझ गया था कि जब तक वो रघु का मैनेजर था तब तक उसकी ज़िन्दगी बहुत अच्छी थी. लेकिन उसके साथ धोखा करके उसे कुछ हासिल नहीं हुआ. और रघु ने फिर से अपना वर्चस्व बाज़ार मे पहले से ज्यादा जमा लिया था. किशन ने रघु से माफी मांगी तो मंजरी ने उसे बोला - किसी की मेहनत की कमाई तो चुराई जा सकती है लेकिन मेहनत करने की कला नहीं. हमने तुम्हें माफ किया. किशन मंजरी से बोला - भाभीजी क्या मैं फिर से आप लोगों का व्यापार संभाल सकता हूं? मंजरी ने कहा - देर आए दुरुस्त आए.

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