Chanchal chauhan 09 Feb 2024 कहानियाँ समाजिक संजय पंडित बुजुर्ग खाना खिलाना धन्यवाद श्रद्धा छुट्टी 3827 0 Hindi :: हिंदी
"सर मुझे कल की छुट्टी चाहिए।" संजय ने अपने सर से कहा। " संजय तुम्हें पता है दो दिन बाद रिपोर्ट सबमिट करनी है। छुट्टी का तो सोचो ही मत।" सर ने संजय से कहा। सर मजबूरी ना होती तो मैं कभी नहीं कहता। संजय ने कहा। " ऐसी क्या मजबूरी है संजय? सर ने पूछा "सर कल मेरी मां का श्राद्ध है।" संजय बोला। "ठीक है , सुबह दो घंटे लेट आ जाना । पंडित को खाना खिलाकर।" सर ने कहा। "नहीं सर मैं पंडित को खाना नहीं खिलाता।" सर ने संजय को बीच में ही टोका, "तो क्या करते हो?" "मैं महिला वृद्ध आश्रम जाता हूं। उन महिलाओं को अपने हाथ से खाना परोसता हूं । फिर तीन-चार घंटे उनके साथ ही बिताता हूं!" संजय ने आराम से बताया। । पर संजय … श्राद्ध में तो पंडित वगैरह को ------आधा वाक्य सर मुंह में ही रख गया। आप ठीक कह रहे हैं सर। पर मुझे लगता है मां के श्राद्ध पर वृद्ध महिला आश्रम से अच्छी जगह तो हो ही नहीं सकती । संजय ने कहा । वह कैसे ? संजय । सर एकदम बोला। "उन्हें मेरे में अपना बेटा दिखता है और मैं उनकी बातों में अपनी मां पा जाता हूं। जब मैं उनके साथ बैठता हूं तो वैसी ही केयर और फिक्र उनकी बातों में होती है जो मां की बातों में होती थी। उनकी छोटी-छोटी समस्याएं होती हैं सर। सुन लेता हूं। हल करने की पूरी कोशिश करता हूं। उनके चेहरे पर जब खुशी आती है तो लगता है ऊपर मां मुस्कुरा रही है और कह रही है ।शाबाश मेरे बेटे। इन माँओं की यूं ही सेवा करते रहना। संजय की आवाज में एक सकून था । तुम धन्य हो संजय, बहुत अच्छी सोच है तुम्हारी। तुम जाओ । काम हम रात को देर तक बैठकर निपटा लेंगे । सर के शब्दों में शाबाशी जैसे भाव थे। श्रद्धा का सही अर्थ पंडित को खाना खिलाना ही नहीं होता बल्कि अपने बुजुर्गों के याद करने का दिन होता है उन्हें धन्यवाद देने का दिन होता है जिनकी कृपा से आज हम सुरक्षित हैं स्वस्थ हैं।