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वफादारी-वफादारी के बारे में सभी जानते हैं कि वफादारी क्या चीज़ है

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ बाल-साहित्य वफादारी, कुत्ते की वफादारी, कुत्ता, वफादार, भूत, भूतिया, भूतिया कहानी, डरावनी कहानी 8813 0 Hindi :: हिंदी

वफादारी के बारे में सभी जानते हैं कि वफादारी क्या चीज़ है. लेकिन फिर भी बता देना चाहता हूँ कि वफादारी वो हुनर है जिससे दुनिया जीती जा सकती है. सब को अपना बनाया जा सकता है. वफादारी हमारे चरित्र में होती है, और होनी भी चाहिए उनके लिए जो हमारे लिए वफादार हैं और उनके लिए भी जो हमारे अपने हैं. हमें अपनी जान दे कर भी वफादारी निभानी चाहिए. वफादारी को अच्छे से बताने के लिए आपको एक किस्सा बताने जा रहा हूँ. ध्यान से पढ़िए तो खुद समझ जाएंगे कि वफादारी क्या होती है.
ये कहानी है मोती की. मोती कोई समुद्र मे सीपी के पेट से पाए जाने वाला अमूल्य वस्तु नहीं एक पालतू कुत्ते का नाम है. जो कि हमारी कहानी का मुख्य किरदार है. कुछ समय पहले की बात है. एक गाँव जिसमे कुछ हादसे सामने आ रहे थे. हादसे कुछ ऐसे थे जिन पर किसी को विश्वास ना हो. एक जला हुआ घर था गाँव के बीचोंबीच. उस घर से सभी दूर रहना पसंद करते थे. क्योकि वो घर ही हादसों का कारण था. गाँव मे कोई भी खुशी का काम नहीं हो पाता था. खुशी का माहोल होते ही वो सामने आ जाता था और सब तबाह करने लगता था. वो कौन था? वो ऐसा क्यूँ करता था? किसी को कोई खबर नहीं थी. वो था एक कुत्ते का भूत. जो कि किसी वजह से गाँव वालों पर बहुत नाराज़ और आक्रोशित था. गाँव वाले उसके इस आक्रोश को ख़त्म करने मे असमर्थ थे. क्योकि वो उसे ना ही जानते थे और ना कारण समझते थे. इसलिए उसे रोकना उनके बस के बाहर था. गाँव मे कोई भी बड़ा काम या विकास के लिए कुछ भी नहीं हो पा रहा था. सब परेशान थे तभी एक खबर ने पूरे गाँव मे सनसनी मचा दी. बच्चे गाँव मे खेल रहे थे और उनमे से एक बच्चा उस जले हुए घर मे घुस गया. भोला भाला नन्हा सा 4 साल का बच्चा. पूरे गाँव मे खौफ का मंज़र छा गया. सब ये बातें करने लगे कि अब वो बच्चा नहीं बचेगा. कुत्ते का भूत उसकी जान ले लेगा. बच्चे की माँ तो इन बातों को सुन कर चक्कर खा कर गिर पड़ी. उसका 4 साल का लाडला हादसे का शिकार होने वाला था तो उसकी छाती कैसे ना फटे. पूरे गाँव मे मातम छा गया. तभी एक बुजुर्ग सब के बीच मे हाथ मे लाठी का सहारा लेते हुए धीरे धीरे आए. उनको देख कर सब सोच मे पड़ गए कि आज दादाजी चल कर यहां तक क्यूँ आए जब कि पिछले 30 सालों से ये मौन धारण किए हुए थे. वजह किसी को पता नहीं थी. आज वो आए और मौन तोड़ कर बोल पड़े. बोले कि आज तक तुम लोगों को अपनी गलती का पता ना चला. और जब तक अपनी गलती को सुधारोगे नहीं तब तक ऐसा होता ही रहेगा. सब सोच मे पड़ गए कि दादाजी ऐसा क्यूँ बोल रहे हैं. पूछने पर उन्होने बताना शुरू किया. 30 साल पहले की बात है. हमारा गाँव एक छोटा सा मगर समृद्ध गाँव था जिसका नाम सुमनपुर था. सुमनपुर नाम इसलिए क्योकि सुमन नाम की एक बहुत ही भली औरत ने उस गाँव को सजाया सँवारा और बसाया था. गाँव वालों के लिए वो देवी से कम नहीं थी इसलिए गाँव का नाम उस देवी के नाम पर रख दिया गया. सुमनपुर गाँव में एक समृद्धि भरा परिवार ऐसा था जो पूरे गाँव को अपना घर मानता था. अपने घर जैसा समझता था और गाँव की प्रगति के लिए अपनी धन संपत्ति को पूरे मन से खर्च करता था. परिवार के मुखिया श्रीमान गुप्ता जी दिल के बहुत नेक इंसान थे. वो इसी घर में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहते थे. पत्नी का नाम नीलिमा और बच्चों का नाम राहुल और अभिषेक था. नीलिमा पतिव्रता स्त्री थी और दोनों बच्चे बहुत ही शालीन थे. पढ़ाई में अव्वल और स्वभाव में सुंदर. उनके घर मे एक सदस्य और था मोती. मोती कहने को उनका पालतू कुत्ता था लेकिन वो पूरे गाँव का रखवाला था. सारे गाँव वाले उसे बहुत प्यार करते थे. और वो सारे गाँव मे आज़ादी से रहता था. उसके गाँव मे होने की वजह से किसी को गाँव मे चोरी जैसी घटना का कोई डर नहीं था. सभी बड़े चैन सुकून से ज़िन्दगी बसर कर रहे थे. रात को बेफिक्र होकर सो जाते थे क्योकि मोती जो वहाँ था. एक रात की बात है. गाँव को किसी की नज़र लग गयी. रात को लुटेरे आ गए और गुप्ता जी के घर को निशाना बना दिया. पूरे गाँव मे केवल गुप्ता जी ही थे जो धन और मन दोनों के धनी थे. मन का लुटेरों को क्या करना था. उन्हे तो गुप्ता जी का धन चाहिए था. धन की लालच में आ कर लुटेरों ने गुप्ता जी के घर मे घुस कर सारा धन और जवाहरात लूट लिया. लेकिन वो इतने मे नही माने. घर को आग भी लगा दिया. उस समय मोती गाँव मे गश्त लगाने गया हुआ था. जब लौटा तो अपने मालिक के घर को जलती हालत मे देख कर अवाक् सा रह गया. वो मदद के लिए गाँव की ओर भागा क्योकि आग बुझा पाना उसके वश मे नही था. गाँव के हर घर के बाहर जा कर मदद के लिए भौंकता रहा लेकिन सभी अपनी मस्ती मे चैन की नींद सोते रहे. किसी ने भी उस की आवाज़ पर ध्यान नहीं दिया. अंत मे मोती थक कर खुद गुप्ता खानदान को बचाने के लिए आग मे कूद पड़ा लेकिन बचा पाने मे असमर्थ रहा और खुद भी जल कर मर गया. इस तरह एक हँसता खेलता समृद्ध परिवार समाप्त हो गया. सुबह होने पर गाँव वालों ने यह नज़ारा देखा तो चौंक गए. लेकिन उन्हे अपनी गलती का अंदाज़ा नहीं हुआ कि उनकी बेफिक्र होकर सोने की वजह से ऐसी घटना घट गयी है. उन्होने इसके लिए कोई कदम नहीं उठाया और अपने रोजमर्रा के काम मे मशगूल हो गए. कुछ दिनो के बाद से ऐसे हादसों की शुरुआत हुई जिससे गाँव वाले हताहत हो गए लेकिन फिर भी उन्हे गलती मानना नहीं आया और आज भी वही गलती है जिसका परिणाम हमे भुगतना पड़ रहा है.
 अब गाँव वालों को समझ आया कि उस घर की कहानी क्या थी और हादसों की वजह क्या थी. दादाजी से ये किस्सा सुन कर उस परिवार ने पूछा जिसने अपना बच्चा खोया था कि आप को ये सब कैसे पता और अब अपने बच्चे को बचाने के लिए हम क्या करें. तब दादाजी ने बताया कि उस समय वो बगल के गाँव मे रहते थे और खेती किया करते थे. उनकी दोस्ती गुप्ता जी से थी. दोनों का एक दूसरे के घर आना जाना लगा रहता था. गुप्ता जी और दादाजी भाई जैसे थे. मोती उन्हे बहुत चाहता था. उनके आने पर आगे पीछे गोल गोल चक्कर काटने लगता था. लूट की घटना के बाद जब दादाजी यहां आए थे तो ये सब देख कर उन्हे सदमा लग गया था और उसी दिन से मौन हो गए थे, और यहीं रह रहे थे. गाँव के लोग उनकी देखभाल करते थे. ये सब जान कर उस परिवार ने कहा कि अब तो आप ही हमारी मदद कर सकते हैं. मोती आपको बहुत चाहता था तो आप की बात जरूर मानेगा. आप कुछ किजिये. बहुत मिन्नतें करने के बाद दादाजी मान गए लेकिन फिर बोले कि उस समय गलती गाँव वालों की थी तो पूरे गाँव वालों को मोती से माफी मांगनी पड़ेगी तभी कुछ हो सकता है. ये सुन कर गाँव वाले तैयार हो गए. दादाजी उस घर मे गए और मोती की आत्मा ने उन्हे देखा तो पहले की तरह ही उनके आगे पीछे चक्कर काटने लगा. उनके पीछे गाँव वाले भी अंदर गए तो मोती उन्हे देख कर आग बबूला हो गया. फिर दादाजी ने मोती को शांत किया और गाँव वालों ने मोती से उस घटना के लिए माफी मांगी. दादाजी ने मोती को मनाया तब जा कर मोती ने सब को माफ किया और बच्चे को जाने दिया. उसके बाद मोती की आत्मा को शांति मिल गयी और वहां से गायब हो गया. उस दिन सभी ने खुशी मनायी और गाँव मे खूब धूम मचाया क्योकि उनके गाँव का एक बड़ा संकट दूर हो चुका था. साथ ही सब ने ये भी शपथ ली कि आज के बाद ऐसी लापरवाही कभी नहीं करेंगे. दादाजी से भी माफी मांगी और शुक्रिया अदा किया. उस दिन सब को समझ आ गया कि वफादारी क्या होती है. मोती मर कर भी अपने परिवार की वफादारी नहीं भुला पाया था. 
वफादारी यही होती है. उम्मीद करता हूँ कि आप सभी को समझ आ गया होगा. और यह भी सीख मिल गयी होगी कि लापरवाही करने से कितना कष्ट उठाना पड़ सकता है. अपनो को खोने का दुख क्या होता है ये मोती ने बता दिया. इसलिए सब का खयाल रखें. कभी लापरवाह ना बनें.

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