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गुड़िया पर कविता-गुड़िया हरी-भरी उठी जगमगाती

Shivani singh 05 Jul 2023 कविताएँ अन्य 5714 0 Hindi :: हिंदी

गुड़िया हरी-भरी उठी जगमगाती,
अपनी खेलने की रंगीन दुनिया सजाती।

चंद्रमुखी आंखों से मुस्काती है वह,
मासूम सी हंसी में जीवन की खुशियाँ भरती।

रंग-बिरंगे वस्त्रों में ओढ़ी हुई है वह,
सदैव ताजगी और नयीता बरतती।

बालों में गुलाबी रेशमी पिन बांधी है,
कटरे-कटरे सपनों को संजोती है।

रातों की चाँदनी में जगमगाती है वह,
ख्वाबों को चाँदनी से सजाती है।

सुन्दरता से भरी है वह कविता,
दिल को छूने वाली अद्भुत वाणी है।

उसकी आंखों में खेलती है प्यार की चमक,
हर लम्हे में बस खुशियों की बरसाती है।

जब वह मुस्कराती है और खेलती है,
मन को भांप लेती है सबकी प्यार की खुशबू।

गुड़िया नयी उमंगों से भरी है,
बचपन की सबसे अमूल्य वस्त्र है।

उसकी विचारधारा अज्ञात है दुनिया से,
मस्तिष्क की गहराइयों में छुपी विलासिता है।

गुड़िया अपनी आंखों से सपनों को देखती है,
जीवन की उड

़ान उठाती है उसके साथ।

गुड़िया की जीवनरेखा सुंदर है और मीठी,
उम्र भर खुशियों की खिलती फुहार बनी रहती।

मेरी प्यारी गुड़िया, तू हमेशा बनी रह,
आँखों में चमक, मुस्कानों में बहार बनी रह।

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