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हे पार्थ

संदीप कुमार सिंह 06 May 2024 कविताएँ समाजिक मेरी य़ह कविता भी आप लोगों को बहुत पसंद आएगी. 2106 0 Hindi :: हिंदी

रण भूमि अनुपमा अद्भुत,
पक्ष विपक्ष दोनों भाई भाई ।
रिश्ते नाते मोह बंधन,
जीवन प्रभा अथाह अकुलाई ।
कर कंपन कदम अविचल,
पर सुन कर्म चेतना शुद्ध स्वर  ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।

परम सौभाग्य संग्राम काल,
प्रतीक्षारत दिव्य स्वर्ग द्वार ।
पटाक्षेप मूल उर वेदना,
विस्मृत विगत प्रेम दुलार ।
अनुभूत योद्धा विराट छवि,
दूर कर सारे अंतर्द्वंद असर ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।

अधर्म अनैतिकता अवसान,
रण बांकुरी दृढ़ प्रतिज्ञा ।
सत्य नित विजय भव,
युद्ध विमुखता कर्तव्य अवज्ञा ।
संकलित अनंत शौर्य ओज,
विजय अधर्म मार्ग अवरूद्ध पर ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।
निष्काम कर्म प्रेरणा पुंज,
परिणाम चिंता भाव  गौण ।
सहर्ष निर्वहन युद्ध संहिता ,
पाप विनाश ध्येय कोण ।
बाण चला शत्रु दल पर,
कर धर्म रक्षा हित अनिरुद्ध समर ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️

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