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काबिलियत के पंख

Raj Ashok 26 Jan 2024 कविताएँ अन्य सिकन्दर 20055 0 Hindi :: हिंदी

ना. देख ताज सिकन्दर का
    क़यामत के वक्त से 
यहाँ, हर कोई खोफ खाता है। ।
ये जलजलों की रातों का सिलसिला है। 
यहाँ अपना भाग्य हर कोई  खुद लिखने आता है।
जब अपने सघर्ष की सबुहाँ, तुम्हें सोने ना
दे ,समझ
बहुत जख्म बाकी है। लगने 
दिल ,और जिस्म पे
अभी तोऔर बहुत से वार सहने  है। यहाँ
कभी शौर जमाने का रोकेगा। 
कभी नाराजगी,अपनो की दीवार बनेगी। ।
बहजाऐगा,  सारा रक्त उनका  जो 
 बातें तुफानों के रास्ते बदलने की करते है।
उस कमजोर लम्हे , से पहले 
 जरा, खुद को तैयार कर.....
ले साहस की तालीम , 
ये चुनौतीयों के इम्तिहान ही काबिलियत के पंख है। 
जरा ,इन्हे शौर मचाने दे।
जीतने की चाहत है। खुद को बह जाने दे 
दखे ,तुझे दुनियां 
झुके सब के सर कदमो मे तेरे
वो वक्त बादशाहत का तेरे हुकुम से आऐ....बस ये ही कर्म है।

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