SANTOSH KUMAR BARGORIA 24 May 2023 कविताएँ दुःखद इस कविता के माध्ययम से मैं कवि संतोष कुमार बरगोरिया यह बताना चाहता हूं की आज मेरे अपने ही लोग लोग मुझसे रुष्ट हो चुके कोई मुझे न्यायाधीश तो कोई मुझे सत्यवादी हरिश्चन्द्र कहकर मुझे यह बताने की चेष्टा कर रहे हैं की वे कितने समझदार थे जो सबकुछ जानते हुए भी खामोंश थे जबकी मैं कितना मुर्ख था जो अपने सामने घटित घटना को देखकर यह बताने की चेष्टा की क्या सही है और क्या गलत । 6701 0 Hindi :: हिंदी
खता हमारी बस इतनी की हमनें , सत्य को सत्य और झूठ को झूठ कहा । विफर गये नजाने कितने ही मेरेअपने, की आखिर किस बिनाह पर मैंने ये सबकुछ कहा ।। खता हमारी बस इतनी की हमनें , सत्य को सत्य और झूठ को झूठ कहा । लोग मारने लगे मुझे ताना की बड़े चले थे न्यायाधीश बनने , निकल गयी अब सारी हेकड़ी पड़ते ही बस दो फटके , है सही गलत का ज्ञान हमें भी आखिर फिर क्यों खामोंश हैं हम, एक बार अगर सोचा होता तो ना व्यर्थ में सत्यवादी हरिश्चन्द्र बनते, गलती की है तो अब सजा भुगतने के लिए रहो तैयार अब तुम हद तो हो गयी तब साथी जब सत्य का साथ देने के बजाय लोग मेरे ही सर दोष मढ़ने लगे ।। खता हमारी बस इतनी की हमनें , सत्य को सत्य और झूठ को झूठ कहा ।2। धन्यवाद
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