मारूफ आलम 14 May 2023 कविताएँ समाजिक #अवारा#तुम और तुम्हारे# 5764 0 Hindi :: हिंदी
तुम और तुम्हारे अवारा कुत्ते उपद्रव मचाए फिरते हैं गलियों मे काटते फिरते वेवजह इंसानों को छोड़ देते हैं वायरस उनके खून मे इस मकसद के साथ कि वो भी उपद्रवी बन जाएं मारूफ आलम