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वो शिव ही तो अनंत है!

Ujjwal Kumar 23 Feb 2024 कविताएँ धार्मिक Writer Ujjwal kumar वो शिव ही तो अनंत है! 6520 0 Hindi :: हिंदी

वो शिव ही तो अनंत है
वो निरंकार ओंकार है 
सृष्टि का जहां अंत है
वहा से शिव प्रारम्भ है
गंगा है जिसके शिस पर
भुजंग शोभे कंठ में
वही तो शिव अनंत है
वही तो शिव अनंत है
जो वेदो के रचयिता है
संगीता को भी जो दिया
नृत्य का भी देवता उनको ही जग बोलता 
जब क्रोधित होते है तब
त्रिनेत्र उनका खुलता
कृपालु तो है कुछ ऐसा है
विद्यापति के घर चाकर बने
वो शिव ही तो अनंत है
बाकी तो सब शून्य है
जो खुद तो है गृहविहिंन है
दुनिया को देता झोली भर
दयालु तो कुछ ऐसा है
बेलपत्र में ही तृप्त है
दो बूंद जल के बदले  में 
गुरुद्रुह को भी सरन लिए
वो शिव ही तो अनंत है
जो बैठते मृग-छाल पर 
शक्ति जिसकी बामंगी है
प्रकृति जिसकी सेविका
करते सवारी बैल का
वो शिव ही तो अनंत है
गंधर्व हो या राक्षस
या हो वो नागवंसी ही
कभी न करते भेद भाव
सबको देते समान वर
वो एक ही तो देव है
जो अजन्मा कहलाता है
वो निरंकार स्वरूप है
अनंत है अविनाशी है
जिसका ना प्रारम्भ है
ना मध्य ना ही अंत है
वो शिव ही तो अनंत है
वो निरंकार ओंकार है!

रचनाकार-उज्ज्वल कुमार
(हजारीबाग, झारखंड)

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