Disha Shah 10 May 2024 आलेख धार्मिक 1060 0 Hindi :: हिंदी
भगवद गीता के पहले अध्याय में जब युद्ध होने वाला था , तब अर्जुन चारो ओर देखता है वो सोचने लगता है की ये सब मेरे अपने है भला अपने को मार कर मुझे , क्या मिलेगा? सब कुछ खत्म हो जाएगा , नारी वर्ण शंकर हो जाएगी , ऐसे में अर्जुन पूरी तरह परेशान हो जाता है उससे क्या करना है उससे कुछ भी नहीं पता होता है वो श्रीकृष्ण जी के पास जाता है और उनके चरणों का स्पर्श करता है , है माधवन आप ही मेरे गुरु हो कृपया मुझे इस समस्या का समाधान बताइए श्रीकृष्ण भगवान समझाते है अर्जुन को श्रीकृष्ण भगवान मुस्कुराते हुए समझाते है , अर्जुन तुम्हारे जैसा शोर्य वान व्यक्ति ऐसा बोल रहा है , अर्जुन तुम्हे युद्ध करना ही होगा है अर्जुन आत्मा का अंत कभी नहीं होता , तब चिंता की कोई बात है ही नहीं अर्जुन , एक मनुष्य एक शरीर में ज्यादा समय तक नहीं रहे सकता है , जन्म मृत्यु निश्चित है , अर्जुन उन्हे कोई भी ताल नहीं सकता जो इंसान जान लेता है की शरीर और आत्मा अलग है तब उनकी सारी उलझन खत्म हो जाती है अर्जुन अगर तुमने युद्ध नहीं किया तो संसार में लोग तुम्हारी निंदा करेंगे की कायरता से तुम हार गए , इससे अच्छा है तुम युद्ध करो , अगर हारोगै तो स्वर्ग कि प्राप्ति होगी अगर जीत जाओगे तो यहां राज करोगे तुम इसीलिए कर्म करो तुम , फल की आशा मत रखना क्यों की कर्म करना तुम्हारे हाथ में है तो निस्वार्थ भाव से कर्म करो अंत में जीत तुम्हारी ही होगी ऐसे में श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन को समझाते भी है की जो व्यक्ति के अंदर कामना होती है वो व्यक्ति अहंकार और क्रोध का शिकार होता है , वो अविवेक होता है बुद्धि भ्रष्ट नहीं होनी चाहिए , ज्ञान का प्रकाश होना जरूरी है , अपने मन को काबू में करना होता है , जब मनुष्य अपनी इंद्रियों को काबू में करता है , तब वो मन को स्थिर कर लेता है वो अपनी जिंदगी में जहा जाना जाए वो जा सकता है अर्जुन तुम कर्म कर , फल की आशा मत रख इसीलिए इस संसार के हमारी भी कुछ हालात ऐसी ही है हमें अपनी जिंदगी में कुछ बड़ा करना होता है , तब हम डरने लगते है की , ये इंसान मेरी बारे में क्या कहेगा , सेम टू सैम हम अर्जुन के जगह ही खड़े है ,चारो ओर अपने है लेकिन हम बोलते है हम से नहीं होगा ऐसे में कही ना कही हम दुर्योधन बन जाते है , क्यों की हम गुरु के पास जाते ही नहीं लेकिन हम गुरु के पास जाते , तब हमारे जितने भी सवाल है उतने सवाल का जवाब हमें मिल जाता लेकिन हम ये करते ही नहीं है क्यों की गुरु के बिना हम कभी भी अपनी मंजिल तक नहीं पोहोच सकते है कर्म करना हमारे हाथ में है और फल देना वो परमात्मा के हाथो में है तब निश्वार्थ भाव से , जिस भी क्षेत्र में रुचि है उसमें कर्म करना चाहिए क्यों की इससे आप की आने वाली जिंदगी बदल जाती है हमें अहंकार को त्याग देना चाहिए क्यों की अहंकार आप को सुखी होने ही नहीं देगा , शांति और सुकून उनमें है ही नही हमेशा अच्छाई के रास्ते में आगे बढ़ना चाहिए , लोगो का फायदा देखना चाहिए , जो करना है वो हर हाल में करना चाहिए ओर अपने मन के स्थिर करना चाहिए क्यों की स्थिरता से ही आप अपनी मंजिल तक पोहोच सकते हो