मोती लाल साहु 26 May 2023 कविताएँ समाजिक भूख निगले जा रहा है, आंखों से दृष्टि गई- जुबान से आवाज भी गई- मिट गए रिश्ते-नाते- अब मजहब देश दुनिया तक याद नहीं। 10356 0 Hindi :: हिंदी
भूख निगले जा रहा है! आंखों से दृष्टि गई- जुबान से आवाज भी गई सब मिट गए रिश्ते-नाते,, अब मज़हब- देश-दुनिया तक याद नहीं भूख निगले जा रहा है!! -मोती