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बछ पूजा-समय की विडंबना व संयोग से बछड़ा बड़ा होता गया

Santosh kumar koli ' अकेला' 10 Oct 2023 कहानियाँ अन्य बछ पूजा 4523 0 Hindi :: हिंदी

मेरे पड़ोस में एक परिवार रहता है। रमेश जो कि परिवार के मुखिया हैं, उनका खुद का व्यवसाय है। उनका नाम उस गांव के सभ्य परिवारों की अलिखित सूची में विद्यमान् है। यह अतिशयोक्ति भी नहीं है क्यों कि उनके रहन-सहन से यह बात स्वत: सिद्ध होती है। वे धार्मिक प्रवृत्ति के भी हैं, इसकी झलक उनकी हर गतिविधि में देखी जा सकती है।
एक दिन रमेश के घर एक बछड़े को बड़े अदब व सलीके से लाया गया, पूछने से पता चला कि आज बछ पूजा है। सभी घर वाले स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा की सजी हुई थाली लेकर आए। इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि दीपक बुझ नहीं जाए। बछड़े को भी पकड़ +पकड़कर रगड़ रगड़कर नहलाया गया।
इसी दरमियान रमेश का पोता, जो कि अभी 6 -7 साल का ही था, हाथ में डंडी लेकर खेलते- खेलते बछड़े के पास आ गया।
इस आशंका  से कि बछड़ा कहीं बिदक नहीं जाए  रमेश ने डंडी छीनकर दूर फेंक दी। बच्चों को रमेश ने पूरे बूते से बच्चों के बूते की सीमा के बाहर तक धमकाया। ख़ैर..  बच्चा रोता हुआ दूर चला गया। बछड़े को चंदन का तिलक लगाया गया। पूरे मनोयोग से पूजा की गई, सारे घरवालों ने हाथ जोड़कर परिक्रमा की और प्रणाम कर आशीर्वाद लिया। अंत में बछड़े को खाने के लिए हरा चारा व अन्य खाद्य पदार्थ दिए गए।
परिवार वाले बछ पूजा का पुण्य बटोरकर 'अहो भाग्य' समझ रहे थे उधर बछड़ा, बछड़ा होने पर गौरवान्वित महसूस कर रहा था। ख़ैर.. बछड़े को हंसी -खुशी विदा किया गया।
समय बीतता गया उसी हिसाब से बछड़ा बड़ा होता गया, समय की विडंबना व संयोग से वही बछड़ा, एक दिन रमेश के खेत में बिना जान की परवाह किए अवैध तरीके से घुस गया। 'पहली परवाह पेट की, बाक़ी परवाह अलसेट की'। उसने चरना शुरू कर दिया। थोड़ा ही समय बीता था कि रमेश की नज़र बछड़े पर पड़ी। वह क्रोध से आग बबूला होकर कुल्हाड़ी हाथ में ले बछड़े की तरफ दौड़ा। नेकी को जानवर कभी नहीं भूलते शायद बछड़े ने रमेश को पहचान लिया इसलिए उसने ज़्यादा परवाह नहीं की।
रमेश आव देखा न ताव  कुल्हाड़ी से बछड़े पर वार कर दिया प्रहार से बछड़ा करहा उठा चारा जो कि उसके मुंह में था नीचे गिर गया। कुल्हाड़ी रक्त से सन गई, बछड़े का रक्त टपककर रज में रल गया। कुल्हाड़ी पूरी धंसकर, शरीर में फंसकर लटक गई, कुल्हाड़ी लटकती गई बछड़ा भागता गया। वह अपने गौवंश होने पर रो रहा था कह रहा था "मैं जाऊं तो कहां जाऊं सरकार मुझे काटने नहीं देती जनता पेट भरने नहीं देती"। ख़ैर.. जान बची लाखों पाए वह वहां से भाग गया। उसके बाद वह कभी भी उस गांव में नज़र नहीं आया।
यह घटना मेरे मन में एक प्रश्न छोड़ गई कि यह, कैसी बछ पूजा?

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