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Santosh kumar koli

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कई- कई का, है बेशर्मी में सार। कर बेहयाई, समझे चतुराई, बनते डेढ़ होशियार। उसकी तो है उतरी हुई, औरों की झट ले उतार। एक नकटा, सौ पर भारी read more >>
एक चिड़ी, ले तिनका उड़ी, जमा नीम की डाली। दूजा लेने, दूजी बार उड़ी, तानापाई, मन घर खुशहाली। फर- फर उड़ती, देखी आकर, तिनके तृण तृण, डाल खाली read more >>
क़लम डाटती, फटकारती, कांपती है। तर्ज़न- गर्जन, मान मर्दन, हांफती है। भावों की दूरी, मजबूरी, शब्दों से मापती है। दुनिया का अक्षत अक्स, प read more >>
कहां साधते हैं, सीधे गुण को। मानते हैं, मिश्रित गुण -अवगुण को। तड़फती मीन डालें तड़ाग, समझे वरुण को। ज़रा समझ ना आए, जरा तारुण को। मरह read more >>
विक्षोभ, विक्षत, विक्षुब्ध, संपीड़ित घुटन, घुमड़ी, टकराती तड़ित्। चिंता सज्जित, तनाव जड़ित। ना पर, परा, स्वयं गढ़ित। स्फूरण, स्फूर् read more >>
मैं, तू मजबूर, मजबूर सारी दुनिया। लिया -दिया हो जाता, दिया- लिया। दिग्गज के दिन दरकते, लुढ़कता हाशिया। समझ से परे, ईश्वर की ग़ज़ब गुनिय read more >>
उद्धेग, उद्दंड, उच्छृंखल, उचित -अनुचित। कब ऋजु, कब गरब गहेला, कब तीव्र उत्तेजित। कब दृढ़निश्चयी, कब दिग् भ्रमित। कब रिस, कब उद्धर्ष, कब read more >>
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