Santosh kumar koli ' अकेला' 19 Feb 2024 कविताएँ समाजिक आर्जव आरोप 2674 0 Hindi :: हिंदी
कहां साधते हैं, सीधे गुण को। मानते हैं, मिश्रित गुण -अवगुण को। तड़फती मीन डालें तड़ाग, समझे वरुण को। ज़रा समझ ना आए, जरा तारुण को। मरहम मलें, पहले लगने दें तीर। कांटा चुभने दें फिर निकालें, आशीष देगा राहगीर। उलझा- उलझाकर सुलझाना, होता विवेक नीर- क्षीर। जड़, जगत् का यही मिस्तर, यही तासीर। अवगुण गुणन गुण, गुणनफल न्याय। ताप तपने दें, फिर प्रदान प्रच्छाय। दुख एहसास आवश्यक, स्वात: सुखाय। संसार करे सलाम, अध्याय न्याय पर्याय।