Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

अंधी दौड़

Santosh kumar koli ' अकेला' 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक अंधी दौड़ 78078 0 Hindi :: हिंदी

तेल, नमक, लकड़ी, चीज याद रह गई तीन।
जीता -जागता मनुष्य, बनके रह गया मशीन।

खाना- पीना, उठना- बैठना, सबकी रेल- पेल।
भौतिकता की चकाचौंध ने, बिगाड़ दिया खेल।
मनुष्य बनकर रह गया, सिर्फ़ पैसे का रखैल।
अमीर- उमरा सब लग रहे, जैसे कोल्हू में बैल।
मक्सी घोड़ा हो रहा, कसी- कसाई ज़ीन।
जीता -जागता मनुष्य, बनके रह गया मशीन।
वक़्त के पास वक़्त है, मनुष्य दे दिया अर्क़।
गरानी ग़रारा कर रही, बेड़ा हो गया ग़र्क़।
एक अंधी दौड़ में, यह सारी दुनिया बही।
हे प्रभु इस दौड़ का, अंत तो बता सही।
इसी अंधी दौड़ ने, ली शांति छीन।
जीता- जागता मनुष्य, बनके रह गया मशीन।
तेल, नमक, लकड़ी, चीज याद रह गई तीन।
जीता -जागता मनुष्य, बनके रह गया मशीन।
वाही- तबाही, भाग- दौड़ ने, बिमारियों को बुलाया।
खुद के दुख से दुखी नहीं, औरों के सुख से दुख उठाया।
अपंग और विकलांग शिशु, गर्भ में ही होता।
जो जन्म ले लिया, भव- सागर में खाता गोता।
नागिन नाच नाच रहा, पैसा बजाता बीन।
जीता -जागता मनुष्य, बनके रह गया मशीन।
जड़, जमीन से जुड़े, प्रेम, शांति से जीते थे।
रूखा -सूखा खाकर, ठंडा पानी पीते थे।
आज सबसे बड़ा रुपया,न भाभी न भैया।
चकला हुआ, खो गया भूल -भुलैया।
आज मनुष्य रह गया, जल बाहर की मीन।
जीता -जागता मनुष्य, बनके रह गया मशीन।
तेल, नमक, लकड़ी, चीज याद रह गई तीन।
जीता -जागता मनुष्य, बनके रह गया मशीन।

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: